नूरपुर बेदी में जमीनों की कीमतों ने चंडीगढ़-मोहाली जैसे शहरों को भी पीछे छोड़ दिया

नूरपुर बेदी
नूरपुर बेदी भले ही एक गांव हो, लेकिन इन दिनों यह किसी शहर से कम नहीं है। प्रॉपर्टी डीलरों ने यहां की जमीनों को चंडीगढ़ से भी ज्यादा महंगा कर दिया है। नूरपुर बेदी में व्यावसायिक जमीनों की कीमतों ने चंडीगढ़-मोहाली और खरड़ जैसे शहरों को भी पीछे छोड़ दिया है। कुछ अन्य शहरों के सक्रिय प्रॉपर्टी डीलरों द्वारा पूल बनाकर सरकारी दरों से कहीं ज्यादा दामों पर जमीनें खरीद रहे हैं।

जानकारी के अनुसार, नूरपुर बेदी शहर में एक जमीन 15 करोड़ रुपए प्रति एकड़ (किला) के दाम पर बिकी है। जबकि सरकारी दरों के अनुसार इसकी रजिस्ट्री लाखों में बताई जा रही है। प्रॉपर्टी डीलरों के इस खेल में पंजाब सरकार के राजस्व को लाखों रुपए का नुकसान हो रहा है। जानकारी के अनुसार, नूरपुर बेदी में कई राजनीतिक नेताओं ने प्रॉपर्टी डीलरों का एक गिरोह बना रखा है। ये इलाके की किसी भी व्यावसायिक या कृषि भूमि पर कड़ी नजर रखते हैं। जब कोई व्यक्ति ऐसी जमीन बेचने की बात करता है तो ये जमीन व्यापारी तुरंत उससे संपर्क करते हैं और जमीन खरीद लेते हैं। पिछली सरकारों के दौरान, कुछ राजनेताओं ने अपनी सरकार के दौरान रेत माफिया और गुंडा टैक्स वसूलने वालों को अपना पूरा आशीर्वाद देकर करोड़ों के बजाय अरबों रुपए का काला धन इकठ्ठा किया था।

इस काले धन को सफेद करने के लिए, अब वे राजनीतिक नेता बाजार में व्यावसायिक जमीन खरीदने के लिए प्रॉपर्टी डीलरों का उपयोग कर रहे हैं। जिसके कारण नूरपुर बेदी क्षेत्र में जमीनों की कीमतें आसमान छू रही हैं। इलाके में बिना पुडा की किसी मंजूरी के नाजायज कॉलोनियां और शोरूम बनाए जाने का सिलसिला आम है। नूरपुर बेदी शहर और इसके आसपास बड़े पैमाने पर कृषि भूमि खरीदी जाती है और कॉलोनियां या प्लॉट काटकर बेचे जाते हैं।

कृषि भूमि को व्यावसायिक भूमि में बदलने के लिए सी.एल.यू. या पुडा से कोई मंजूरी नहीं ली जाती है। इस तरह पंजाब सरकार की आय को करोड़ों का चूना लगाया जा रहा है। गौरतलब है कि सरकारी जमीनों के रेट बहुत कम हैं, लेकिन ये राजनेता महंगे दामों पर जमीन खरीदकर सस्ते दामों पर उसकी रजिस्ट्री करवा लेते हैं। राजस्व विभाग और पुडा मूकदर्शक बने हुए हैं। पहले भी इस पत्रकार ने इस मामले को खुलकर उठाया था। उस समय पुडा कुछ समय के लिए हरकत में आया था, लेकिन बाद में उनका कोई कार्रवाई न करना संदेह के घेरे में है। अगर पंजाब सरकार इस मामले को गंभीरता से ले, तो सरकारी खजाने में इजाफा हो सकता है।
 

 

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