दिल्ली हाईकोर्ट ने एम्स के एक जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर को दुष्कर्म के एक मामले में सशर्त जमानत दे दी है। न्यायमूर्ति शालिंदर कौर की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि मामले में आरोप पत्र दाखिल हो चुका है और ट्रायल पूरा होने में समय लगेगा, इसलिए आरोपी को जमानत दी जानी चाहिए। पीठ ने नोट किया कि शिकायतकर्ता महिला और आरोपी के बीच सहमति से संबंध स्थापित हुए थे।
बताया जा रहा हैं कि शिकायतकर्ता के खिलाफ जबरन वसूली का एक मामला दर्ज है, जिसमें डॉक्टर ने आरोप लगाया था कि महिला ने उसे और उसके परिवार को आपराधिक मामले में फंसाने की धमकी देकर पैसे ऐंठने की कोशिश की। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि शिकायतकर्ता ने अन्य व्यक्तियों के खिलाफ भी समान प्रकृति की प्राथमिकी दर्ज कराई हैं। इन परिस्थितियों में कोर्ट ने डॉक्टर को 50 हजार रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि के एक जमानती पर रिहा करने का आदेश दिया।
कोर्ट के फैसले का आधार
कोर्ट के फैसले का आधार यह था कि शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच सहमति से संबंध स्थापित हुए थे और शिकायतकर्ता के आरोपों में सच्चाई नहीं पाई गई। कोर्ट ने यह भी कहा कि एक परिपक्व, शिक्षित और विवाहित महिला होने के नाते शिकायतकर्ता को विवाह की रस्मों की जानकारी होनी चाहिए। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि शिकायतकर्ता के आरोपों के आधार पर आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। इसलिए, कोर्ट ने डॉक्टर को सशर्त जमानत दे दी।
फैसले का महत्व
कोर्ट का यह फैसला कई मायनों में महत्वपूर्ण है और इसका प्रभाव भविष्य के मामलों पर पड़ सकता है। यह फैसला इस बात को रेखांकित करता है कि अदालतें किसी भी मामले में आरोपियों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। साथ ही, यह भी सुनिश्चित करती हैं कि न्यायिक प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की अनुचित कार्रवाई न हो। इस फैसले से यह भी स्पष्ट होता है कि अदालतें किसी भी मामले में सबूतों और तथ्यों के आधार पर निर्णय लेती हैं।