आज पुरे देश में फसलों का त्यौहार मनाया जा रहा है। कही उत्तर भारत में बैसाखी के नाम से तो असम में बिहू , बंगाल में नबा वर्षा और केरल में पुरम विशु के नाम से आज और कल मनाया जायेगा। उत्तर भारत में मुख्य तौर पर पंजाब में बैसाखी का त्योहार वसंत ऋतु की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। हर साल बैसाखी का त्यौहार 13 या 14 अप्रैल मनाया जाता है। वैशाख मास के प्रथम दिन को पर्व के रूप में मनाने की परंपरा सिखों के तृतीय गुरु श्रीगुरु अमरदास जी के काल में आरंभ हुई थी।
बैसाखी हिंदू और सिखों का साझा पर्व
बैसाखी के दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते है। यही कारण है कि बैसाखी को हिंदू और सिखों के साझे पर्व के रूप में देखा जाता है। इसका धार्मिक महत्व तब बढ़ गया, जब गुरु गोविंद सिंह जी ने वर्ष 1699 में वैसाखी के ही दिन आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ सजाया। गुरु अमरदास जी के काल से प्रत्येक वर्ष सिख बैसाखी के दिन बड़ी संख्या में एकत्र होते और गुरु के दर्शन कर उनका आशीर्वाद लेकर कृतार्थ होते थे। गुरु गोविंद सिंह जी ने इस अवसर पर सिखों को खालसा नाम दिया, जिसका अभिप्राय था सारे विकारों, अवगुणों से मुक्त होना और सद्गुण धारण कर परमात्मा को समर्पित हो जाना। खालसा एक ऐसा समाज था, जहां न कोई जाति थी, न वर्ण अथवा वर्ग। यह ऐसे धर्म पालकों की संगत थी, जो उपकार करने और दीन-दुखी के हित हेतु त्याग करने के लिये सदैव तत्पर रहे।
फसल पकने पर ख़ुशी का नाम बैसाखी
बैसाखी का पर्व उल्लास के साथ ही गुरु गोविंद सिंह द्वारा स्थापित उन आदर्शों के स्मरण का भी है, जो समानता, सदभाव, संयम और प्रेमपरिपूर्ण गौरवशाली समाज का आधार हैं। इस महीने में रबी की फसल पककर पूरी तरह से तैयार हो जाती है और उनकी कटाई भी शुरू हो जाती है। इसीलिए बैसाखी को फसल पकने और सिख धर्म की स्थापना के रूप में मनाया जाता है।
कैसे मनाई जाती हगाई बैसाखी
बैसाखी के दिन गुरुद्वारों को सजाया जाता है। सिख समुदाय के लोग गुरुवाणी सुनते है। घरों में भी लोग इस दिन विशेष पूजा-अर्चना करते है। खीर, शरबत आदि पकवान बनाए जाते हैं. इस दिन शाम के समय घर के बाहर लकड़ियां जलाई जाती है। जलती हुई लकड़ियों का घेरा बनाकर गिद्दा और भांगड़ा कर अपनी प्रसन्नता जाहिर करते है। लोग गले लगकर एक दूसरे को बैसाखी की शुभकामनाएं देते हैं।