Delhi: नव भारती स्कूल का अनुशासनहीनता का नया घोटाला, बच्चे का भविष्य दांव पर

दिल्ली के शास्त्रीनगर में स्थित नव भारती सीनियर सेकेंडरी पब्लिक स्कूल में एक बच्चे के साथ हुए अनुशासनहीनता के मामले ने इलाके में हड़कंप मचा दिया है। स्कूल प्रबंधन की लापरवाही और ग़लत व्यवहार के कारण एक छात्र का भविष्य दांव पर लग गया है। स्कूल की तरफ से गलती से गलतियां होती है पर स्कूल प्रशासन के मुताबिक जिम्मेदारी परिवार की है। महीने में प्रत्येक छात्र से चार से साढ़े चार रुपये तक फीस लेने वाले (हालाँकि स्कूल फीस कक्षा दर कक्षा अलग होती है) स्कूल अपनी गलतियों की जिम्मेदारी भी नहीं लेते है। ऐसे में जब परिवार अपनी शिकायत लेकर स्कूल पहुंचते है बच्चे की शिक्षिका उनके साथ दुर्व्यवहार भी करती है।

मामला क्या हैं ?

बच्चा नव भारती सीनियर सेकेंडरी में 8वीं कक्षा में पढ़ता था। वह पिछली कक्षा में तीन विषयों में फेल हो गया था। स्कूल ने उसे कम्पार्टमेंट परीक्षा देने को कहा था। लेकिन,स्कूल ने बिना उसकी कम्पार्टमेंट परीक्षा लिए ही उसे 9वीं कक्षा में प्रवेश दे दिया और चार महीनों की फ़ीस भी ले ली। परिवार ने स्कूल के इस कार्रवाई पर विश्वास किया और उम्मीद की कि उनका बच्चा अब अगली कक्षा में पढ़ रहा है।

बच्चे को कम्पार्टमेंट की तैयारी के लिए कोई समय नहीं दिया गया, उसे एक तरफ कम्पार्टमेंट के परीक्षा की तैयारी करनी थी साथ ही नौंवी कक्षा के सिलेबस भी पढ़ने थे। यही कारण रहा कि बच्चा दो विषयों (विज्ञान,गणित ) में पास करने के बाद भी एक विषय (संस्कृत) में तीन बार कम्पार्टमेंट देने के बावजूद फेल हो गया। स्कूल प्रशासन ने इस बारे में बच्चे के परिवार को कोई जानकारी नहीं दी। बच्चे को 14 मई से 8वीं कक्षा में वापस भेजा जा रहा है।

माता की चिंता और बच्चे पर प्रभाव:
बच्चे की माता इस घटना से बहुत चिंतित हैं। वे समझ नहीं पा रहीं हैं कि स्कूल ने ऐसा क्यों किया और उनसे क्यों नहीं बताया। माता ने स्कूल के साथ कई बार संपर्क किया लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। इस घटना का बच्चे पर बहुत गहरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा है। उसका व्यवहार बदल गया है। माँ ने बच्चे के व्यवहार में बदलाव देखकर कारण पूछा तो उसने रोते हुए सब बताया तब जाकर घरवालों को पूरा सच पता चला।
परिवार का कहना रहा कि बच्चे ने उन्हें इस बारे में नहीं बताया क्यूंकि बच्चा डरा हुआ था। बच्चे के पिता इस दुनिया में नहीं है और वो अकेली है स्कूल की पीटीएम के दिन वो किसी कारण वश जा नहीं पाई और ना ही स्कूल से आया एक कॉल उठा पाई। बच्चे की माँ ने कहा कि ये सब एक ही बार हुआ। स्कूल फीस के लिए बार-बार फ़ोन करने वाली मैडम ने दुबारा कभी कॉल नहीं किया। ना ही उन्हें किसी और तरीके से सूचित किया गया ना बच्चे की मार्कशीट उसे दी गयी। माँ ने कहा कि बच्चे को अगर आंठवी में ही वापस भेज दिया तो उसे स्कूल के नौंवी कक्षा के व्हाट्सअप ग्रुप से निकाला क्यों नहीं गया? अगर निकाला होता तो हमें पहले पता चल जाता और बच्चे पर मानसिक दवाब नहीं पड़ पाता।

स्कूल प्रशासन का बयान और भ्रम:
स्कूल प्रशासन का कहना है कि उन्होंने बच्चे से आंठवी कक्षा की फ़ीस ली है। हालांकि परिवार को स्कूल से मिली रसीदों में से एक आंठवी कक्षा की और एक नौंवी कक्षा की फ़ीस रसीद है। स्कूल का कहना है कि यह गलती से छप गई है। स्कूल प्रशासन ने दिल्ली अपटूडेट मीडिया से इस बारे में बात करते हुए कहा कि स्कूल पीटीएम में परिवार का कोई सदस्य नहीं आया ना ही एक बार किये गए कॉल को उठाया गया। स्कूल प्रशासन की तरफ से ये भी बताया गया कि कक्षा अध्यापिका से गलती हुई कि अभी तक बच्चे को नौंवी कक्षा के व्हट्सप्प ग्रुप में रखा गया है। साथ ही स्कूल प्रशासन ने ये भी छोटी गलती मानी कि उन्हें पहले बच्चे को कम्पार्टमेंट देने देना चाहिए था पर उसे नौंवी में बिठा दिया।
वहीँ स्कूल की शिक्षिका सोनिया से पूछा गया कि कम्पार्टमेंट कब-कब और कितनी बार हुआ तो इस पर सोनिया मीडिया पर ही भड़क गयी और बताने से साफ़ इंकार कर दिया। इतनी गलतियों के बाद भी स्कूल प्रशसन का कहना है कि ये बच्चे के परिवार की गलती है। वो अपने बच्चे पर ध्यान नहीं देते।

यह घटना स्कूल प्रशासन की लापरवाही और अनुशासनहीनता को प्रकट करती है। महीने की मोटी-मोटी फीस लेने वाले इन स्कूलों की जिम्मेदारी सिर्फ दिखावा करने की है। क्या ये जिम्मेदारी स्कूल और शिक्षकों के नहीं कि जो बच्चें पढ़ाई में कमजोर है उनपर ज्यादा ध्यान दिया जाये? क्यों इतनी मोटी फीस देने के बावजूद बच्चों को अलग से ट्यूशन लेने की जरूरत होनी चाहिए ? क्या फेल हुए बच्चों को कम्पार्टमेंट की तैयारी करवाना स्कूल और शिक्षकों की जिम्मेदारी के अंतर्गत नहीं आता ? ये कहाँ तक जिम्मेदार तरीका है कि एक बच्चा जो पहले ही पढ़ाई में कमजोर है उसपर एक साथ दो कक्षाओं का बोझ दिया जाये उसे खुद ही तैयारी करने के लिए छोड़ दिया जाये ? बच्चे के परवरिश की जिम्मेदारी परिवार की होती है और उसके पढ़ाई की जिम्मेदारी स्कूल और शिक्षकों की। पर स्कूलों का ये तर्क होता है कि कक्षा में कई बच्चे होते है तो सब पर ध्यान कैसे दिया जाए, लेकिन फीस तो हर एक बच्चे से पूरी ली जाती है तो ध्यान देने की जिम्मेदारी किसकी है ? बच्चों के प्रति नरम रुख रखने के नाम पर बच्चे को आगे की कक्षा में बिठाया जाता है तो फीस देने के लिए तुरंत दवाब क्यों डालते है? बच्चे के परीक्षा के परिणामों का इंतज़ार क्या स्कूल प्रशासन नहीं कर सकता ?
विद्या दान महादान कहा जाता है पर इन स्कूलों में विद्यादान के नाम पर धंधा चलता है। सरकारी स्कूलों में ये मुफ्त में नहीं मिलती और निजी स्कूलों में अभिभावकों द्वारा अपनी पाई-पाई देने के बाद भी नहीं मिलती। इन निजी स्कूलों ने आज के समय में शिक्षा को ही सबसे बड़ा व्यापार बनाया हुआ है। यह ज़रूरी है कि स्कूल प्रशासन बच्चों के हित को ध्यान में रखकर काम करे और उनकी शिक्षा और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखे। बच्चे के परिवार को इस मामले में न्याय मिलना चाहिए और स्कूल को अपनी गलती के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए

Mehak Bharti
Author: Mehak Bharti

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