नई दिल्ली
बिहार विधानसभा चुनाव में दो गठबंधन आमने-सामने हैं और दोनों की ही अपनी समस्याएं हैं। एनडीए ने सीट बंटवारा तो कर लिया है, लेकिन उससे उपजी नाराजगी को थामने की चुनौती है। वहीं महागठबंधन में अब तक सीट बंटवारा ही अंतिम रूप नहीं ले सका और फिर कैंडिडेट्स को लेकर खींचतान तो बाकी ही है। इस बीच एनडीए क्राइसिस मैनेजमेंट में भी बढ़त लेने की कोशिश में है। होम मिनिस्टर अमित शाह खुद बिहार पर फोकस बढ़ा रहे हैं और अगले कुछ दिनों तक वह पटना में ही कैंप करेंगे। अलग-अलग दिनों में वह विधानसभा चुनाव होने तक पटना में समय देंगे।
इसके तहत उनका पहला दौरा गुरुवार से ही शुरू हो रहा है। वह 16 से 18 अक्तूबर तक पटना में कैंप करेंगे। इस दौरान वह जेडीयू, जीतन राम मांझी, चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा के खेमे से डील करेंगे। दरअसल चर्चाएं हैं कि गठबंधन के साथियों में कुछ मतभेद हैं। नीतीश कुमार की नाराजगी की चर्चाएं हैं तो वहीं उपेंद्र कुशवाहा तो शेरो शायरी से बहुत कुछ कह ही रहे हैं। ऐसे में अमित शाह का पटना में कैंप करना मायने रखता है। वह अपने प्रवास के दौरान संगठन की बैठकों में रहेंगे। सहयोगी दलों के नेताओं से मिलेंगे और कुछ रैलियों को भी संबोधित करेंगे।
कुछ प्रत्याशियों के नामांकन में भी रहेंगे होम मिनिस्टर अमित शाह
अमित शाह का शेड्यूल अब तक फाइनल नहीं है, लेकिन खबर है कि कुछ प्रत्याशियों के नामांकन में भी वह शामिल हो सकते हैं। इसके बाद वह दीवाली ब्रेक पर लौटेंगे और 22 अक्तूबर से अगले 4 दिनों के लिए फिर से पटना में कैंप करेंगे। 25 अक्तूबर को उनका फिर से दिल्ली लौटने का प्लान है और उसके बाद 28 को छठ महापर्व के समापन के बाद बिहार वापसी करेंगे। भाजपा के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान, सह-प्रभारी सीआर पाटिल और यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य भी बिहार में ही रहेंगे। चर्चाएं हैं कि अमित शाह खुद हर चीज की मॉनिटरिंग कर रहे हैं। प्रचार की कमान वह खुद अपने हाथ में ले चुके हैं और दूसरे राज्यों के नेताओं को भी जिम्मेदारी मिली है।
कई राज्यों के सीएम और डिप्टी सीएम उतारेगी भाजपा
भाजपा की प्रचार शैली अन्य दलों के मुकाबले काफी आक्रामक रहती है। इसी के तहत कई राज्यों के मुख्यमंत्री, डिप्टी सीएम, मंत्री समेत तमाम नेता बिहार पहुंचेंगे। फिलहाल पार्टी का पूरा फोकस इस बात पर है कि गठबंधन में एक राय रहे और सब मिलकर चुनाव लड़ेंगे। जनता के बीच किसी भी तरह से ऐसा संदेश ना जाए कि गठबंधन में ऑल इज वेल नहीं है।