दिल्ली की तीस हजारी अदालत ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर से आशा व्यक्त की है कि वह एक शख्स को रेप और छेड़छाड़ के फर्जी मामले में फंसाकर उससे पैसे उगाहने की कथित योजना में शामिल कुछ पुलिसकर्मियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करेंगे और दिल्ली पुलिस के आदर्श वाक्य ‘शांति, सेवा, न्याय’ को गलत साबित नहीं होने देंगे। इस मामले में राजेंद्र नगर पुलिस स्टेशन की पुलिस द्वारा लगाए गए सभी अपराधों के आरोपों से आरोपी व्यक्ति को अदालत ने निर्दोष घोषित कर दिया और रेप का झूठा केस दर्ज कराने और शपथ लेकर अदालत में झूठी गवाही देने के लिए शिकायतकर्ता के खिलाफ केस दर्ज करने का निर्देश दिया।
अदालत के एडिशनल सेशन जज अनुज अग्रवाल ने 2 जुलाई के फैसले में अफसोस जताया कि इस केस में आरोपी को जांच एजेंसी ने बिना किसी ठोस वजह के और एफआईआर दर्ज होने से पहले ही बहुत जल्दी में गिरफ्तार कर लिया था। अभियोजन पक्ष के गवाह सब इंस्पेक्टर कन्हैया लाल और आईओ महिला सब इंस्पेक्टर सोनी लाल के बयान से यह बात स्पष्ट होती है। अदालत ने इसके बाद कहा कि आरोपी की गिरफ्तारी के इस तरीके को सिर्फ ‘हिरासत’ कहकर (और बाद में औपचारिक गिरफ्तारी दिखाकर) सही ठहराने के लिए पुलिस ने कमजोर तर्क दिए, लेकिन यह स्पष्ट है कि पुलिस अधिकारियों ने आरोपी को उसके घर से हिरासत में लेते ही उसकी निजी स्वतंत्रता पर रोक लगा दी थी।
इस मामले में सरकारी वकील अभिषेक राणा ने अभियोजन की ओर से और एडवोकेट एस पी यादव तथा कुश शर्मा ने बचाव पक्ष की ओर से प्रतिनिधित्व किया। केस के तथ्यों की जांच करते हुए अदालत ने कहा कि बचाव पक्ष का यह दावा अति महत्वपूर्ण है कि संबंधित पुलिस अधिकारी एसआई कन्हैया लाल, आईओ सोनी लाल और तत्कालीन एसएचओ ने अभियोजन पक्ष के साथ मिलकर ‘सांठगांठ’ की ताकि आरोपी से धन वसूल सकें। अदालत ने इस मामले में खुद कोई निर्देश जारी करने के बजाय संबंधित पुलिसकर्मियों के विरुद्ध कार्रवाई का फैसला पुलिस कमिश्नर के निर्णय पर छोड़ दिया।