11,404 करोड़ लगाने के बाद भी मैली है गंगा

नई दिल्ली। गंगा के प्रदूषण पर लगाम न लग पाने का एक बड़ा कारण इससे समझा जा सकता है कि पिछले पाँच वर्षों में स्वच्छ गंगा राष्ट्रीय मिशन की ओर से 11,404 करोड़ रुपये राज्यों और दूसरी एजेंसियों को दिए जाने के बावजूद जरूरत भर के सीवेज शोधन संयंत्र यानी एसटीपी स्थापित नहीं हो सके हैं।
केंद्र सरकार के आंकड़े की माने तो पाँच गंगा बेसिन राज्यों उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और बंगाल में प्रतिदिन निकलने वाले दूषित जल के उपचार की क्षमता से एक तिहाई कम है। ये राज्य प्रतिदिन 3558 मिलियन लीटर (एमएलडी) दूषित जल उत्पन्न करते हैं, लेकिन इसके निस्तारण के लिए अभी तक 2569 एमएलडी क्षमता के एसटीपी ही स्थापित हो सके हैं।

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वही अगर नमामि गंगे प्रोजेक्ट की ही बात की जाए तो 2014-15 से अब तक केंद्र सरकार 15,517 करोड़ रुपये जारी कर चुकी है और गंगा की सफाई के लिए सबसे मजबूत कड़ी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट को ही माना गया है। वैसे विशेषज्ञों को इस पर भी संदेह है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पाँच राज्यों में प्रतिदिन निकलने वाले सीवेज की जितनी मात्रा (3558 एमएलडी) का अनुमान लगाया है, वह वास्तविक स्थिति के मुकाबले काफी कम है। जो एसटीपी कार्यरत भी हैं वे अपनी पूरी क्षमता से नहीं चल रहे हैं।
पिछले सप्ताह नदियों में जा रहे दूषित जल को लेकर लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में जलशक्ति मंत्रालय ने कहा है कि टिहरी गढ़वाल, फर्रुखाबाद, उन्नाव, मिर्जापुर, गाजीपुर, बलिया, बक्सर, छपरा, पटना, हाजीपुर, बेगूसराय, लखीसराय, मुंगेर, भागलपुर, हावड़ा, कोलकाता, मुर्शीदाबाद, दक्षिण 24 परगना में सीवेज अभी भी गंगा में बह रहा है। इन शहरों में एसटीपी लगाने की प्रक्रिया चल रही है। इसके साथ ही कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी और टिहरी गढ़वाल में दूषित जल का गंगा नदी में जाना कायम है।
जलशक्ति मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार, राज्यों को एसटीपी के लिए लगातार पैसे दिए जा रहे हैं। कई जगह काम पिछड़ा हुआ है, खासकर बंगाल में। यहाँ अभी तक सीवेज ट्रीटमेंट की आधी क्षमता भी विकसित नहीं हो सकी है। अगर दूषित जल और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता के अंतर को खत्म भी कर लिया जाता है तो शहरों और कस्बों के विस्तार को देखते हुए यह उपाय भी काफी साबित हो सकता है।

 

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Author: Staff Reporter

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