सैयद शाहनवाज हुसैन नीतीश कुमार की पूर्व सरकार में उद्योग मंत्री थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें बिहार को भी गुजरात-महाराष्ट्र की तरह औद्योगिक विकास की पटरी पर लाने की जिम्मेदारी सौंपी थी। इसी क्रम में सैयद शाहनवाज हुसैन ने मई 2022 में दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में बड़ा कार्यक्रम कर देश के शीर्ष उद्योगपतियों को बिहार में निवेश के लिए आमंत्रित किया। इस कार्यक्रम के दौरान ही उनसे यह प्रश्न किया गया कि क्या निवेशकों के लिए बिहार में उचित माहौल है? प्रश्न क्षेत्र की आपराधिक पृष्ठभूमि और राजनीतिक स्थिरता को जोड़कर किया गया था।
शाहनवाज हुसैन ने कार्यक्रम में आए निवेशकों को यह भरोसा दिया था कि बिहार में आपराधिक घटनाओं का दौर बीत चुका है और उनके लिए वहां निवेश कर बेहतर लाभ कमाने की बड़ी संभावनाएं उपलब्ध हैं। जदयू-भाजपा की गठबंधन की सरकार बिहार में गिर चुकी है और राज्य में आए दिन अपराध की घटनाएं सामने आ रही हैं। उस निवेश कार्यक्रम से जुड़े एक अधिकारी ने अमर उजाला को बताया कि उस कार्यक्रम के बाद देश की 110 बड़ी कंपनियों ने बिहार में निवेश के लिए रुचि दिखाई थी। लेकिन भाजपा-जदयू सरकार गिरने के बाद की परिस्थितियों में तय किए गए लक्ष्य का पांच फीसदी निवेश भी बिहार के लिए नहीं हासिल किया जा सका। अधिकारी के मुताबिक, राजनीतिक अस्थिरता और हिंसा की घटनाओं का निवेशकों पर प्रतिकूल असर पड़ा है।
ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय में कार्यरत मैनेजमेंट गुरु एसोसिएट प्रो. नागेंद्र शर्मा ने अमर उजाला से कहा कि हिंसा और आर्थिक विकास में बिल्कुल उलटा संबंध होता है। जिस क्षेत्र में हिंसा और अपराध की घटनाएं नहीं होती हैं, वहां निवेशक निवेश कर बेहतर लाभ कमाने की कोशिश करते हैं। जिस क्षेत्र में हिंसा-अपराध की घटनाएं अधिक होती हैं, निवेशक वहां अपना पैसा लगाकर खतरा नहीं उठाना चाहता। इसका सबसे बड़ा उदाहरण टाटा का अपना नैनो कार प्रोजेक्ट पश्चिम बंगाल से गुजरात की तरफ शिफ्ट करना कहा जा सकता है।
देश-विदेश के उदाहरण दे रहे सीख
इसके उदाहरण देश के अंदर विभिन्न राज्यों से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक देखे जा सकते हैं। पूर्वोत्तर, जम्मू-कश्मीर और वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित इलाके अपने ही देश में विकास की दौड़ में पिछड़ गए, जबकि दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और हरियाणा जैसे राज्यों ने खूब विकास किया। अपेक्षाकृत शांत वातावरण में होने के कारण चीन-भारत ने खूब विकास किया, जबकि इसी क्षेत्र में पाकिस्तान-अफगानिस्तान फिसड्डी रह गए। पाकिस्तान में सिंधु के किनारे सबसे उर्वर भूमि होने के बाद भी वह अपने लिए आवश्यक खाद्य निर्भरता तक हासिल नहीं कर पाया। इस सबके मूल में पाकिस्तान का आतंकवाद, अपराध और हिंसा के कुचक्र में फंसना है।
केंद्र सरकार ने स्वयं यह दावा किया है कि उसकी नीतियों में परिवर्तन के बाद जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद, अलगाववाद की कोशिशों में कमी आई है। वहां शांति बहाली हुई है और इस कारण राज्य में निवेश बढ़ा है। इससे कश्मीर में पर्यटन और रोजगार की संभावनाएं भी बढ़ी हैं। यह फॉर्मूला देश के किसी भी हिस्से पर लागू हो सकता है। इसलिए विशेषज्ञों की राय है कि विकास के लिए देश के हर हिस्से में शांति और सांप्रदायिक एकता की भावना पैदा करनी चाहिए।
तीसरी अर्थव्यवस्था बनने के लिए शांति जरूरी
प्रधानमंत्री मोदी देश को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने का सपना देख रहे हैं। पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिए देश को लगातार सात से आठ फीसदी की विकास दर हासिल करने की आवश्यकता है। देश यह विकास दर तभी हासिल कर सकता है, जब इसके सभी इलाकों में शांति और स्थिरता बनी रहे। सोशल मीडिया के ग्लोबल दौर में मणिपुर और नूंह की घटनाओं की गूंज पूरी दुनिया में सुनाई पड़ती है। देश को ऐसी किसी भी अतिवादी सोच से बचाने का प्रयास किया जाना चाहिए, जिससे यहां निवेश की संभावनाएं प्रभावित होती हैं।
स्थानीय लोगों को भारी रोजगार
प्रो. नागेंद्र शर्मा ने कहा कि हरियाणा देश के सबसे तेज विकास करने वाले राज्यों में है। इसे दिल्ली के पास होने का बड़ा लाभ मिला। लेकिन अपेक्षाकृत बड़े अपराध से दूर रहने के कारण निवेशकों ने यहां खूब निवेश किया और इसका गुरुग्राम शहर बेंगलुरु की तरह मिलेनियम सिटी के रूप में उभरा। देश के सबसे प्रभावशाली लोगों के यहां बसने से यहां की अर्थव्यवस्था जमकर उछली। इसका लाभ निचले तबकों को भी मिला और उन्हें भी रोजगार के बेहतर अवसर मिले।
अपराध से बढ़ेगी समस्या
वरिष्ठ पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता ने कहा कि वे पिछले 24 वर्ष से गुरुग्राम में रहते हैं। आवश्यक सुविधाएं और बेहद शांत माहौल होने, सभी संप्रदायों में बेहतर तालमेल और मूलभूत ढांचे के विकास के कारण इस शहर ने खूब विकास किया। लेकिन जिस तरह एक षड्यंत्र के अंतर्गत अलगाव को बढ़ावा दिया जा रहा है, इस शहर के एक निवासी होने के तौर पर उन्हें चिंता होती है। उन्होंने कहा कि गुरुग्राम की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलेनियम सिटी और विकास करने वाले शहर के रूप में पहचान है। लेकिन नूंह हिंसा के बाद जिस तरह यहां अपराध की घटना घटी है, उसने स्थानीय निवासियों को परेशान कर दिया है।