संसद के विशेष सत्र में पहले दिन सोमवार को आजादी के बाद 75 साल की उपलब्धियों पर चर्चा जारी है। पीएम मोदी ने सबसे पहले संसदीय यात्रा की शुरुआत, उपलब्धियां, अनुभव, स्मृतियां और उनसे मिली सीख के मुद्दे पर लोकसभा में संबोधन दिया। इस दौरान उन्होंने संसद के पुराने भवन से नए भवन में जाने को लेकर बात की। उन्होंने कहा कि वे इस मौके पर भावुक हैं।
पीएम मोदी ने क्या सब कहा
पीएम मोदी ने अपने संबोधन की शुरुआत करते हुए कहा, “संसदीय यात्रा उसका एक बार फिर स्मरण करने के लिए और नए सदन में जाने से पहले इतिहास की महत्वपूर्ण घड़ी को याद करते हुए आगे बढ़ने का अवसर है। आजादी के पहले ये सदन का स्थान हुआ करता था। आजादी के बाद इस संसद को पहचान मिली। इस इमारत के निर्माण का फैसला विदेशी सांसदों का था लेकिन ये हम बात हम ना कभी भूल सकते हैं कि इसके निर्माण में पसीना देशवासियों का लगा है, परिश्रम और पैसे भी मेरे देश के लोगों के लगे हैं।”
पीएम ने कहा, “इन 75 वर्ष की हमारी यात्रा ने अनेक लोकतांत्रिक परंपरा और उत्तम से उत्तम सृजन किया और इसके सांसदों ने इसमें योगदान दिया। हम भले नए भवन में जाएंगे लेकिन पुराना भवन भी आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरणा देता रहेगा। ये भारत के लोकतंत्र की स्वर्णिम यात्रा का गवाह है। अमृत काल की प्रथम प्रभा का काल, राष्ट्र में नया विश्वास, आत्मविश्वास, नए सपने और राष्ट्र का नया सामर्थ्य की चर्चा है। ये हमारे 75 साल के संसदीय इतिहास का एक सामूहिक प्रयास रहा है जिसके चलते आज दुनिया में देश की गूंज सुनाई दे रही है। चंद्रयान 3 की सफलता से पूरा देश अभिभूत है और इसमें भारत के सामर्थ्य का नया रूप, जो विज्ञान, तकनीक से जुड़ा है। मैं सदन के माध्यम से देश के वैज्ञानिकों को कोटि कोटि बधाई देता हूं उनका अभिनंदन करता हूं।”
इस सदन में जी20 की सफलता को सर्वसम्मति से सराहा है, मैं इसके लिए आपका आभार व्यक्त करता हूं। जी20 की सफलता भारत की सफलता है, किसी व्यक्ति या दल की सफलता है। भारत के संघीय ढांचे ने, विविधता ने 60 स्थानों पर 200 से अधिक सम्मेलन और उनकी मेजबानी पूरी विविधता और आन-बान शान से की और इसका प्रभाव पूरे विश्व पर पड़ा है। यह देश के गौरवगान को बढ़ाने वाला है। भारत इस बात के लिए गर्व करेगा। अध्यक्ष जी, आज भारत विश्व पटल पर अपनी जगह बना रहा है। इसकी वजह हमारे संस्कार हैं, सबका साथ, सबका विकास का मंत्र दुनिया को हमसे जोड़ रहा है।
पीएम ने गिनाई पुरानी उपलब्धिया , कहा पुराना संसद भवन हम सबकी सांझी विरासत
पीएम मोदी ने संसद के नए भवन में जाने को लेकर भी बात की। उन्होंने कहा, “ये बहुत ही भावुक पल है। परिवार भी जब पुराना घर छोड़कर नया जाता है तो बहुत सारी यादें कुछ पल के लिए उसे झकझोर देती हैं। ये हम सब की सांझी विरासत है।”
“आज जब हम इस सदन को छोड़कर नए भवन में जाने वाले हैं तो बहुत कुछ याद आ रही है। जब मैं पीएम बना था तो मैंने सदन की सीढ़ियों पर शीश झुकाया था। प्लेटफॉर्म पर रहने वाला संसद पहुंच गया। मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी ये देश इतना सम्मान और प्यार देगा। समाज के हर वर्ग का प्रतिनिधि इस सदन में नजर आता है और समाज के सभी तबके के लोग हैं। ये भारत के लोकतंत्र की ताकत है कि 25 साल की चंद्राणी मुर्मू इस सदन की सबसे छोटी सदस्य बनीं थी। अनेक संकटों और परेशानियों के बावजूद सांसद, संसद में आए हैं और शारीरिक परेशानी के बावजूद अपने जनप्रतिनिधि कर्तव्य का पालन किया। कई व्हीलचेयर पर आए और किसी ना किसी तरह अपनी जिम्मेदारी निभाई है। कोरोना काल के दौरान भी हमारे सांसद सदन में आए।”
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “सेंट्रल भवन से नेताओं का लगाव इतना ज्यादा है कि वह जनप्रतिनिधि ना होने के बावजूद अभी भी सेंट्रल हॉल आ जाते हैं। इसी भवन में दो साल 11 महीने तक संविधान सभा हुई और उसने देश को मार्गदर्शक संविधान दिया। इन 75 वर्षों में देशवासियों का संसद पर विश्वास बढ़ता ही गया है। लोकतंत्र की सबसे बड़ी खासियत यही है कि लोगों का इस संस्था के प्रति विश्वास अटूट रहे। पंडित नेहरू जी, शास्त्री जी, अटल जी, मनमोहन सिंह तक एक बहुत बड़ी श्रंखला ने सदन में सेवा की और देश को नई दिशा दी। आज उनका गुणगान करने का भी समय है। सरदार वल्लभ भाई पटेल, लोहिया जी ने देशवासियों की आवाज को ताकत देने का काम इस सदन में किया है। उमंग, उत्साह के पल के बीच में कभी सदन की आंख से आंसू भी बहे और देश के तीन प्रधानमंत्रियों को अपने कार्यकाल में ही खोने का दुख भी झेलना पड़ा। तब इस सदन में अश्रुपूर्ण विदाई दी थी।”
अपने संबोधन के दौरान पीएम मोदी ने संसद में काम करने वाले कर्मियों का भी शुक्रिया जताया। उन्होंने कहा, “हम जनप्रतिनिधि अपनी-अपनी भूमिका निभाते हैं लेकिन हमारे बीच एक टोली भी बैठती है, जिनकी भी कई पीढ़ियां बदल गई, जो हमें कागज पत्र पकड़ाने के लिए दौड़ते हैं। इनके काम ने भी सदन के कार्य में गुणवत्ता लाने में अहम भूमिका निभाई और मैं हृदय से उनका अभिनंदन करता हूं। ऐसे ही किसी ने इसकी सफाई की, किसी ने सुरक्षा, ऐसे ही कितने अनगिनत लोगों ने हमें अच्छे ढंग से काम करने में मदद की। उन्हें मैं हमारी तरफ से हमारे सदन की तरफ से विशेष अभिनंदन करता हूं।”
‘आतंकी हमले 2001 से सांसदों को बचाने वालों का नमन’
लोकतंत्र का ये सदन, आतंकी हमला हुआ। यह हमारी जीवात्मा पर हमला था, ये देश कभी उसे भूल नहीं सकता। जिन्होंने सदस्यों को बचाने केलिए अपने सीने पर गोलियां झेलीं, आज मैं उनकों भी नमन करता हूं। आज जब हम इस सदन को छोड़ रहे हैं तो मैं उन पत्रकारों को भी नमन करता हूं, जिन्होंने यहां की पल-पल की जानकारी देश को उपलब्ध कराई। उनका सामर्थ्य था कि वह अंदर की बात भी पहुंचाते थे और अंदर के अंदर की बात भी पहुंचाते थे…भारत की विकास यात्रा को सदन के माध्यम से समझाने की कोशिश की। आज उनके लोकतंत्र की महत्वपूर्ण ताकत बनने को याद करने का भी समय है।
पुराने संसद के एहम मौके
पंडित नेहरू के कार्यकाल के दौरान जब बाबा साहब भीमराव अंबेडकर मंत्री थे तो देश में बेस्ट प्रैक्टिस को लागू करने की दिशा में बहुत काम हुआ। अंबेडकर हमेशा कहते थे कि देश में सामाजिक समानता के लिए देश में औद्योगिकीकरण होना बेहद जरूरी है। उस समय जो उद्योग नीति लाई गई थी, वो आज भी उदाहरण है। लाल बहादुर शास्त्री ने 65 के युद्ध में देश के जवानों को इसी सदन से प्रेरित किया था और यहीं से उन्होंने हरित क्रांति की नींव रखी थी। बांग्लादेश की मुक्ति का आंदोलन और उसका समर्थन भी इसी सदन में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में किया गया। इसी सदन में देश के लोकतंत्र पर आपातकाल के रूप में हुआ हमला भी देखा था। ये सदन हमेशा इसी बात का ऋणी रहेगा कि मतदान की उम्र 21 से 18 करने का फैसला किया गया। इसी सदन ने गठबंधन की सरकारें देखीं।
इसी सदन में न्यूक्लियर समझौते पर अंतिम मुहर लगी और इसी सदन में आर्टिकल 370, वन पेंशन वन टैक्स…जीएसटी, वन रैंक-वन पेंशन भी इसी सदन में देखा। गरीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला भी यहीं हुआ। भारत के लोकतंत्र में तमाम उतार-चढ़ाव हमने देखे हैं और ये सदन लोकतंत्र की ताकत हैं और लोकतंत्र के साक्षी हैं। इसी सदन में चार सांसदों वाली पार्टी सत्ता में होती थी और 100 सांसदों वाली पार्टी विपक्ष में होती थी। इसी सदन में एक वोट से सरकार गिरी थी। नरसिम्हा राव घर जाने की तैयारी कर रहे थे लेकिन इस सदन की ताकत से अगले पांच साल के लिए देश के पीएम बने। 2000 की अटल जी की सरकार में तीन राज्यों का गठन हुआ। जिसका हर किसी ने उत्सव मनाया। इसी सदन ने कैंटीन में मिलने वाली सब्सिडी को खत्म किया। इसी सदन के सदस्यों ने कोरोना काल में सांसद फंड का पैसा जनहित में दिया।
वर्तमान सांसदों के लिए यह विशेष सौभाग्य का अवसर है क्योंकि हमें इतिहास और भविष्य दोनों की कड़ी बनने का अवसर मिल रहा है। कल और आज से जुड़ने का अवसर मिल रहा है। नई उमंग, नए उत्साह से हम यहां से विदा लेने वाले हैं। सदन की दीवारों से हमने जो प्रेरणा, नया विश्वास पाया है, उसे हम आगे लेकर जाएंगे। आज का दिन उन पुरानी स्मृतियों का याद करने का समय दिया, उसके लिए मैं धन्यवाद देता हूं। मैं इस धरती को, सदन को प्रणाम करता हूं।