देश में लम्बे समय से समलैंगिक विवाह का मुद्दा चल रहा था जिसपर 18 अक्टूबर को फैसला दे दिया गया। देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने सोमवार को कहा कि समलैंगिक विवाह पर बीते दिनों दिया गया उनका फैसला अंतर्मन की आवाज से दिया गया था और वह अब भी उस पर कायम हैं।
जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी लॉ सेंटर, वॉशिंगटन डीसी और नई दिल्ली के सोसाइटी फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स द्वारा आयोजित ‘तीसरी तुलनात्मक संवैधानिक कानून चर्चा’ में अपने संबोधन के दौरान मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने ये बात कही।
सीजेआई ने किया था समर्थन
सीजेआई ने कहा कि अक्सर संवैधानिक महत्व के मुद्दों पर दिए गए फैसले अंतर्मन की आवाज ही होते हैं और भले ही समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर उनका फैसला अल्पमत में रहा लेकिन वह अब भी उस पर कायम हैं। बता दें कि बीते दिनों संविधान की पांच जजों की पीठ ने समलैंगिक विवाह को मान्य करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की थी। जिस पर सीजेआई ने अपने फैसले में समलैंगिक जोड़े को बच्चे गोद देने का समर्थन किया था। हालांकि पीठ के तीन जजों ने इसका विरोध किया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा नहीं दिया और संसद पर इस मुद्दे पर कानून बनाने का फैसला छोड़ दिया।
अल्पमत में रहा सीजेआई का फैसला
बता दें कि समलैंगिक विवाह पर फैसला देते हुए संविधान पीठ के सभी न्यायाधीश इस बात पर सहमत थे कि विवाह समानता लाने के लिए कानूनों में बदलाव विधायिका के कार्यक्षेत्र में दखल के बराबर होगा। हालांकि समान नागरिक अधिकार और गोद लेने के अधिकार के सवाल पर न्यायाधीशों में मतभेद थे। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायाधीश एसके कौल समलैंगिक संबंधों को मान्यता देने के पक्ष में थे लेकिन बाकी तीन न्यायाधीशों ने इसका विरोध किया।
बता दें कि बीती 17 अक्तूबर को दिए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने माना कि शादी करना मौलिक अधिकार नहीं है।