दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच बिजली विवाद लगातार बढ़ता ही जा रहा है। आम आदमी पार्टी की तरफ से आतिशी ने भी जनता को यह साफ कर दिया है की अब दिल्ली की जनता को फ्री बिजली नहीं मिल पायेगी अब इस विवाद ने एक अलग ही मोड़ ले लिया है। दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने कहा कि दिल्ली सरकार द्वारा बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को दी गई सब्सिडी की जांच कैग से होनी चाहिए।
सरकार ने कैग के पैनल में शामिल बाहरी ऑडिटर से जांच कराने की घोषणा की है। यह लोगों को भ्रमित करने और भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने की कोशिश है। भाजपा और दिल्ली की जनता इसे स्वीकार नहीं करेगी। कैग से जांच नहीं कराने पर भाजपा इसे लेकर जनता के बीच जाएगी।
प्रेस वार्ता में उन्होंने कहा कि आठ वर्षों से अधिक समय तक आम आदमी पार्टी (आप) सरकार बिना ऑडिट के डिस्कॉम को सब्सिडी देती रही है। निजी बिजली डिस्कॉम में दिल्ली सरकार बराबर की भागीदार है। डिस्कॉम के बोर्ड में आप नेताओं की नियुक्ति की गई। सब्सिडी में भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं।
उपराज्यपाल द्वारा इस मामले पर प्रश्न उठाने के बाद दबाव में आप सरकार ने डिस्कॉम के खातों की जांच की घोषणा की है। यह जांच सिर्फ खानापूर्ति है। कैबिनेट सिफारिश कर उपराज्यपाल को निजी ऑडिटर से जांच की अनुमति देने को बाध्य किया गया है।
भाजपा उपराज्यपाल द्वारा अनुमति पत्र में की गई टिप्पणि से सहमत है कि कैग पैनल में शामिल निजी ऑडिटर से ऑडिट पूर्णतया सही नहीं है। उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार के खाते से ऑडिटर को पैसे दिए जाएंगे इसलिए निष्पक्ष जांच की उम्मीद नहीं की जा सकती है। सब्सिडी देने में भ्रष्टाचार सामने लाने के लिए कैग जांच जरूरी है। नई आबकारी नीति घोटाला के बाद अब यह सरकार बिजली सब्सिडी घोटाला में फंसती नजर आ रही है।
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रामवीर सिंह बिधूड़ी ने कहा कि डिस्कॉम खातों की जांच कराने के दिल्ली सरकार के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में चली गई थी। सात साल पहले दिल्ली हाईकोर्ट से ऑडिट पर रोक लग गई थी। उसके बाद से सरकार की अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
मामले की जल्द सुनवाई हो सके इसके लिए सरकार ने कोई प्रयास नहीं किया। बिजली चोरी में कमी होने का लाभ उपभोक्ताओं को मिलना चाहिए। दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग ने भी यह बात कही थी, लेकिन उपभोक्ताओं की जगह डिस्कॉम को लाभ मिल रहा है। दिल्ली सरकार को बीएसईएस से 21250 करोड़ रुपये लेने थे, लेकिन 11550 करोड़ रुपये लेकर मामला सुलझा दिया गया।