इम्फाल। मणिपुर में हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। बता दे कि मणिपुर में भारतीय सेना और असम राइफ़ल की कुल मिलाकर 123 टुकड़ियां मौजूद हैं। लेकिन आर्म्ड फोर्स स्पेशल पॉवर एक्ट (AFSPA) ना होने की वजह से मैक्सिमम रेस्ट्रेंट के साथ सेना मणिपुर में लॉ एंड ऑर्डर सम्भाल रही हैं लेकिन कोई एक्शन नहीं ले सकतीं। मणिपुर में मई से जारी जातीय हिंसा में करीब 120 लोगों की मौत हो चुकी है और लगभग 3000 लोग घायल हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि चाहे घर जले या लूट हो, उनको केवल क़ानून व्यवस्था बनाये रखने के जिम्मा है। अगर सेना कोई एक्शन लेती है तो मजिस्ट्रेट की मौजूदगी जरूरी है, लेकिन इस समय के हालात में मजिस्ट्रेट मिलना मुश्किल हैं। 63 टुकड़ियां जो अभी मणिपुर की वैली में तैनात हैं, उनके लिये मजिस्ट्रेट की मौजूदगी संभव नहीं है।
हालत ऐसे हैं कि पिछले 2 महीने से चाइना बॉर्डर वाली रिज़र्व फ़ोर्स को भी मणिपुर में तैनात किया गया है। वहीं दूसरी तरफ़ आर्मी और असम राइफ़ल के ऑपरेशन में लोकल हथियार से लैस लोग और मीराबाइपी मुसीबत बन रहे हैं। रोड ब्लॉक हैं और अपने रोड पर बंकर बना रखा हैं। जगह-जगह आर्मी मूवमेंट को रोका जा रहा है। मणिपुर में क़रीबन 40,000 सिक्योरिटी फ़ोर्सेज़ की तैनाती है लेकिन फिर भी हालत स्थिर नहीं हैं उसकी वजह है सिस्टम फेलियर। मणिपुर में नेशनल हाईवे 102, 202, 2 और 37 हैं। इसमें से सिर्फ़ नेशनल हाईवे 37 चल रहा है और बाकी जगह ब्लॉक है। स्टेट पुलिस और राज्य की आर्मोरी से कुल मिलाकर 5300 हथियार लुट चुके हैं। इसमें से केवल 1100 के लगभग वापस मिलें हैं।
इसी बीच भारतीय सेना और असम राइफल ने एक बड़ा ऑपरेशन लॉन्च किया जिसमें 4 जून 2015 में हुए ऐम्बुश, जिसमें हमारे 6 डोगरा के 20 जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे, उसके मेन मास्टरमाइंड को हथियार के साथ पकड़ा था। जिसका नाम सेल्फ स्टाइल लेफ़्ट कर्नल सुजीत है जो एक उग्रवादी है। इसके अलावा 12 उग्रवादियों को भी पकड़ा था, लेकिन मीराबाइपी ने इनको छुड़ाया। झुंड में आकर सेना के सामने खड़ी हो गायी और फिर झड़प के बाद सेना को इन्हें छोड़ना पड़ा। एक दूसरे ऑपरेशन में 4 उग्रवादियों को पुलिस स्टेशन से छुड़वाया गया। पिछले 2 महीनों से ये मीराबाइपी रोड पर हैं और रास्ता बंद हैं। यहाँ तक कि पिछले 2 महीने से सेना का काफिला भी नहीं आ पाया। दिन में रोड पर ब्लॉक और रात में मसाल जलाते हुए गाड़ियों की चेकिंग करते हैं