मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदाय के बीच मई महीने में जातीय हिंसा शुरू हुई थी, इसके बाद शायद ही कोई ऐसा दिन होगा जिस दिन गोलियों की आवाजें लोगों न सुनी हो। जातीय हिंसा से मैतेई और कुकी समुदाय ही नहीं राज्य के गांवों में कई अन्य समुदाय भी इस लड़ाई के खतरों को झेल रहे हैं और वे हर दिन खतरे में रहने के लिए मजबूर हैं।
कुछ गावों की छोटी-छोटी झोपड़ियों और साधारण बस्तियों की दीवारों पर तो ताजा हिंसा के निशान दिखाई देते हैं, जिन पर गोलियों के अनगिनत निशान हैं। घर के अंदर रखे फर्नीचर और रसोई के बर्तनों में अनगिनत गोलीयों के छेद हैं, गोलियां नाजुक दिवारों को काटती हुई, घर में रखे सामनों में जा घुसी हैं।
कभी भी चलने लगतीं है गोलियां
राज्य के फोलजांग मणिपुर राज्य के चुराचांदपुर जिले के समुलामलान तहसील में एक गांव है और वहीं फौबाकचाओ गांव मणिपुर में इम्फाल पश्चिम जिले के वांगोई उपखंड में स्थित है। इन गावों के निवासियों को गोलीबारी का डर है यहां कभी भी गोलियां चलने लगतीं हैं, उन्होंने स्थानीय अधिकारियों रवैये पर भी सवाल उठाया है।
फौबाकचाओ के एक ग्रामीण वाहिद रहमान ने कहा कि हम काफी खतरे के बीच रह रहे हैं। भविष्य के बारे में कोई निश्चितता नहीं है। गोलीबारी अचानक शुरू होती है, और यह घंटों तक चलती रहती है। आगे उन्होंने बताया कि हमारे अपने कुछ साथी ग्रामीणों इस विकट बचने के लिए रिश्तेदारों के पास चले गए। लेकिन उन लोगों का क्या जिनके पास जाने के लिए कोई और जगह नहीं है, हम खतरों के बीच जीने के लिए मजबूर हैं जिनका हम सामना कर रहे हैं।
हिंसा में छोटे बच्चों की जा रही जान
फोलजांग के कुछ निवासियों का कहना है कि वे महसूस करते हैं कि स्थानीय अधिकारियों ने उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया है। इफाफ मयूम खान ने कहा कि मैतेई और कुकी समुदायों के बीच झड़पें मई में इस जगह से सिर्फ 2-3 किमी दूर शुरू हुईं। तब से, हमारी शांति नष्ट हो गई है। कोई भी हमारे जीवन के दर्द को समझने नहीं आया है, न ही स्थानीय विधायक और न ही कोई सरकारी अधिकारी। बस गोलियों की आवाजें सुनाई देती हैं। दुखद बात यह है कि हिंसा ने पहले ही निर्दोष लोगों की जान ले ली है, इस महीने के पहले हफ्ते में छह साल के बच्चे सहित कई लोग गोलीबारी और बम विस्फोटों का शिकार हो गए।
सेना की अधिक तैनाती हो
वहीं एक अन्य ग्रामीण निराश मायुम ने कहा कि हम अपने गांव में और अधिक सेना, सीआरपीएफ या असम राइफल्स की तैनाती चाहते हैं ताकि हम शांति से रह सकें। ग्रामीणों की दुर्दशा फोलजांग से आगे तक फैली हुई है, कांगपोकपी और इम्फाल पश्चिम के पास रहने वाला गोरखा समुदाय भी इसी तरह के खतरे का सामना कर रहा है। सेनापति जिले में रहले वाले एक ग्रामीण संजय बिष्टा ने कहा कि हम शांति चाहते हैं। इस क्षेत्र में शांति बहाल करने के लिए किसी को हस्तक्षेप करना चाहिए।
सुरक्षा बल बफर जोन बनाने के लिए परिश्रमपूर्वक काम कर रहे हैं, जैसे चुराचांदपुर और बिष्णुपुर के बीच स्थापित किया गया, लेकिन यह अशांति को शांत करने के लिए अपर्याप्त साबित हुआ है। एक सुरक्षा अधिकारी ने पीटीआई से बात करते हुए कहा कि मणिपुर के लिए दंगे नई बात नहीं हैं। हर छह से सात साल में किसी न किसी तरह के दंगे होते रहते हैं। लेकिन यह पिछले दंगों से बिल्कुल अलग है। हमने समाज के भीतर इस तरह का विभाजन कभी नहीं देखा है और यह गंभीर स्थिति है।
बफर जोन बनाने के लिए अधिक कर्मियों की आवश्यकता
जब अतिरिक्त बलों की तैनाती की योजना के बारे में सवाल किया गया, तो अधिकारी ने जोर देकर कहा कि निश्चित रूप से, हमें पहाड़ियों और घाटी से सटे क्षेत्रों में प्रभावी बफर जोन बनाने के लिए अधिक कर्मियों की आवश्यकता है। केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) के एक अन्य अधिकारी ने कहा कि स्थानीय सुरक्षा तंत्र परिणाम देने में सक्षम नहीं है। मैतेई और कुकी दोनों समुदायों के नागरिकों ने विभिन्न मामलों के लिए हमारी सहायता मांगनी शुरू कर दी है।