भारत में कोरोना की स्थिति काफी नियंत्रित है, हालांकि स्वास्थ्य विशेषज्ञ सभी लोगों को संक्रमण से बचाव के लिए उपाय करते रहने की सलाह देते हैं। कोरोना के इन नए वैरिएंट्स के जोखिमों को देखते हुए वैक्सीन निर्माता कंपनियों ने इसके अपडेटेड टीके भी बना लिए हैं। हालिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अमेरिका में 7 मिलियन (70 लाख) से अधिक लोगों को अपडेटेड वैक्सीन लगाए जा चुके हैं।
कोरोना के नए वैरिएंट्स के कारण वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य जोखिम बढ़ता हुआ देखा जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक इस समय कोरोना के तीन वैरिएंट्स- एरिस (EG.5.1), पिरोला (BA.2.86) और HK.3 के मामले सबसे ज्यादा रिपोर्ट किए जा रहे हैं। ये सभी ओमिक्रॉन के ही सब-वैरिएंट्स हैं, जिनकी संक्रामकता दर अधिक बताई जाती है। नए वैरिएंट्स आसानी से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी प्रभावित करने वाले हो सकते हैं, जिससे हालिया दिनों में अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढ़ी है। फिलहाल कोरोना के सबसे ज्यादा मामले यूके-यूएस और सिंगापुर में रिपोर्ट किए जा रहे हैं।
7 मिलियन लोगों का वैक्सीनेशन
यूएस डिपार्टंमेंट ऑफ हेल्थ एंड ह्यूमन सर्विसेज द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक बुधवार तक 7 मिलियन से अधिक अमेरिकियों को नए वैरिएंट्स को लक्षित करने वाले टीके लगाए जा चुके हैं। नए वैरिएंट्स के बढ़ते जोखिमों को देखते हुए मॉडर्ना (एमआरएनए.ओ) या फाइजर (पीएफई.एन) और बायोएनटेक
(22यूएवाई.डीई) ने सिंगल शॉट वैक्सीन तैयार की है, जिन्हें कोरोनोवायरस के XBB.1.5 ओमिक्रॉन सबवेरिएंट्स के खिलाफ असरदार पाया गया है। अमेरिका ने देश में इन टीकों के देने की शुरुआत की है।
6 माह से ऊपर के लोगों को दिए जा रहे हैं अपडेटेड टीके
अमेरिकी स्वास्थ्य अधिकारियों ने बताया, 6 महीने और उससे अधिक उम्र के सभी लोगों को ये सिंगल शॉट वैक्सीन देने की तैयारी है, जिससे उनमें कोरोना के नए वैरिएंट्स के कारण होने वाले संक्रमण के खतरे को कम किया जा सके। नए अपडेटेड टीकों की प्रभाविकता को लेकर किए गए शोध में पाया गया है कि ये ओमिक्रॉन के तेजी से बढ़ने वाले नए वैरिएंट्स से सुरक्षा देने और इसके कारण गंभीर रोग के खतरे से लोगों के बचान में मददगार हैं।
Gen-Z में बढ़ी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के लेकर विशेषज्ञ चिंतित
कोरोना ने कई प्रकार से हमारी सेहत पर असर डाला है। इसको लेकर हाल ही में किए गए शोध में वैज्ञानिकों ने चिंता जताते हुए कहा है, कोरोना महामारी के दौर में 18-24 की आयु वाले लोगों में मानसिक स्वास्थ्य पर सबसे ज्यादा असर देखा जा रहा है। भारत के साथ वैश्विक स्तर पर महामारी के दौर में बढ़ी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं एक बड़ी चिंता रही हैं।
आंध्र प्रदेश के क्रेया विश्वविद्यालय के सेपियन लैब्स सेंटर फॉर ह्यूमन ब्रेन एंड माइंड ने मानसिक स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में समझने के लिए ये अध्ययन किया जिसमें Gen-Z (1997 – 2012 के बीच जन्मे) में इसका सबसे अधिक दुष्प्रभाव देखा जा रहा है।