आरएन रवि ने कहा कि इन लोगों ने पूरे देश के लिए आजादी की लड़ाई लड़ी, जिन्होंने जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया। आज वह एक जाति विशेष के नेता बनकर रह गए हैं….लेकिन ये कैसे और क्यों हुआ?
देश में आज जिस तरह की राजनीती हो रही है इसे कई लोग गलत मानते है तो कई लोग सही मानते है हालंकि सबकी अपनी अपनी विचारधरा है और सोचने समझने की शक्ति है लेकिन हमें ये बात याद रखना चाहिए की जिन्होने देश के लिए अपनी क़ुरबानी दी अपने परिवार से जाएदा देश से प्यार करने वाले विरो ने कभी किसी जाती या धर्म के नाम पर लड़ाई नहीं लड़ी बल्कि देश के लिए उन्होंने अपनी लड़ाई लड़ी। हालंकि तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने सोमवार को त्रिची में मारुथु भाईयों के स्मारक पर पहुंचकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। इस दौरान राज्यपाल ने जाति आधारित राजनीति पर तीखा हमला बोला और आरोप लगाया कि राज्य सरकार द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों की यादों को लोगों के मन मस्तिष्क से मिटाया जा रहा है। बता दें कि मारुथु भाई तमिलनाडु के महान स्वतंत्रता सेनानियों में गिने जाते हैं। जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंका और अपने प्राणों की आहूति दी।
राज्य सरकार पर भड़के राज्यपाल
अपने संबोधन में राज्यपाल आरएन रवि ने कहा कि ‘आज मुझे ये देखकर बहुत दुख होता है कि इन महान नेताओं को किसी जाति विशेष के नेता के तौर पर देखा जाता है। इन लोगों ने पूरे देश के लिए आजादी की लड़ाई लड़ी, जिन्होंने जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया। आज वह एक जाति विशेष के नेता बनकर रह गए हैं….लेकिन ये कैसे और क्यों हुआ? अगर इन स्वतंत्रता सेनानियों का जश्न पूरे राज्य के द्वारा मनाया जाता तो लोग भी इसमें शामिल होते लेकिन राज्य सरकार ने इन्हें लोगों की यादों से मिटाने की कोशिश की। राज्य सरकार ने इन्हें मान्यता नहीं दी लेकिन समाज के लोगों ने, जहां से ये नेता आए, उन्होंने इन्हें नहीं भूलने दिया।’
कौन थे मारुथु भाई
मारुथु भाई तमिलनाडु के शिवगंगा राज्य के शासक थे। दोनों भाईयों ने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ साल 1801 में बगावत कर दी थी। बाद में अंग्रेजों के साथ लड़ाई में हार के बाद दोनों भाईयों और उनके समर्थकों को त्रिची किले में सरेआम फांसी दे दी गई थी। दोनों भाईयों को 24 अक्तूबर 1801 में फांसी दी गई थी। उसके बाद से हर साल इन दिन दोनों भाईयों की याद में समारोह का आयोजन किया जाता है। मारुथु भाई भारतीय इतिहास के उन शुरुआती स्वतंत्रता सेनानियों में से हैं, जिन्होंने अंग्रेजी शासन के खिलाफ विरोध का स्वर बुलंद किया था।