क्या इंदिरा गाँधी की संपती को बचाने के लिए ही राजीव सरकार ने खत्म करवाया था ‘विरासत कर’…

क्या इंदिरा गाँधी की संपती को बचाने के लिए ही राजीव सरकार ने खत्म करवाया था ‘विरासत कर’… 30 सालों तक लागू था यह नियम देश मे

कॉन्ग्रेस के नेता सैम पित्रोजा द्वारा ‘विरासत कर’ कि वकालत करना काँग्रेस के लिए जी का जंजाल बन गया है । क्या आपको पता है? कि ये कानून देश में 30 सालों तक लागू था और इसे ठीक उस समय खत्म किया गया था जब इंदिरा गाँधी की संपत्ति उनके पोते-पोतियों के नाम होनी थी।

इंडियन ओवरसीज कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष और राहुल गाँधी के सलाहकार सैम पित्रोदा ने ‘विरासत कर (Inheritance Tax)’ का मुद्दा छेड़कर कॉन्ग्रेस की परेशानी बढ़ा दी है इस मुद्दे ने लोकसभा चुनावों के दौरान काँग्रेस के किरकिरी करवा दी है। अब लोकसभा चुनाव से पहले वो पुराने पन्ने भी खुलने लगे हैं जिनपर अबतक चुप्पी थी।

क्या है ‘विरासत कर (Inheritance Tax)’

ज्ञात रहे कि  ‘विरासत कर’ देश के लिए नया टैक्स नहीं है। 40 साल पहले तक ये भारत में लागू था, जिसे 1985 में राजीव गाँधी सरकार ने उस समय खत्म किया जब इंदिरा गाँधी के संपत्ति के बँटवारे की बात आई। मौजूदा जानकारी के अनुसार, यह ‘विरासत कर’ का कॉन्सेप्ट देश में तीन दशकों , 1985 तक अस्तित्व में था।

20 लाख रुपए से ऊपर की संपती पर लगता था 85% टैक्स।

एस्टेट ड्यूटी एक्ट 1953 के तहत, व्यक्ति के मृत्यु के बाद उसकी विरासत का कर 85% तक जा सकता था। इसमें भी दरें निर्धारित थीं। जो प्रॉपर्टी 20 लाख रुपए से ऊपर थी उसमें 85% टैक्स लगता था जिसका मतलब है कि व्यक्ति की मौत के बाद अधिकांश जमीन पर अधिकार सरकार का हो जाता था। हालाँकि, इस कानून ने  उस तरह से काम नहीं किया, जिस प्रकार से सोचा गया था।

अब दिलचस्प बात तो ये है कि जिस समय पर ये कानून रद्द किया गया वो वही समय था जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की प्रॉपर्टी उनके पोते-पोतियों के नाम पर होनी थी। राजीव गाँधी सरकार ने इस काम से ठीक एक माह पहले एस्टेट ड्यूटी 1953 को खत्म किया, उस समय वीपी सिंह वित्त मंत्री हुआ करते थे। घोषणा की गई  कि ये कानून 1 अप्रैल 1985 के बाद से लागू नहीं होगा। इसके बाद 2 मई 1985 को इंदिरा गाँधी की करीबन 21 लाख 50 हजार की संपत्ति उनके तीन पोते-पोतियों में हस्तांतरित हो गई।

यूनाइटेड प्रेस इंटरनेशनल (यूपीआई) की 2 मई 1985 की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1981 में हस्ताक्षरित वसीयत में इंदिरा गाँधी ने अपने बेटे राजीव गाँधी और उनकी पत्नी सोनिया गाँधी को वसीयत का निष्पादक (एग्जिक्यूटर) नियुक्त किया था, लेकिन बाद में उन्होंने उन्हें कुछ नहीं दिया। उन्होंने अपनी बहु मेनका गाँधी के लिए भी कुछ नहीं छोड़ा था। सारी संपत्ति तीनों पोते-पोतियों के नाम की गई थी।

राजीव गाँधी द्वारा वसीयत अदालत में दिखाए जाने के बाद इसे अखबार में भी प्रकाशित किया गया था। इस वसीयत नामे के अनुसार इंदिरा गाँधी संपत्ति का बड़ा हिस्सा महरौली में एक फार्महाउस था, जिसकी कीमत करीब एक लाख डॉलर थी।

क्या था इंदिरा गाँधी के वसीयत नामे मे ?

इसके अलावा तीनों बच्चों के नाम इंदिरा गाँधी और जवाहरलाल नेहरू द्वारा लिखित पुस्तकों के कॉपीराइट के साथ-साथ इकट्ठा हुए लगभग 75,000 डॉलर की नकदी, स्टॉक और बांड भी थे। वहीं इंदिरा गाँधी की प्राचीन वस्तुएँ और लगभग 2500 डॉलर की निजी आभूषण केवल प्रियंका गाँधी के लिए छोड़े गए थे। 1984 में तीनों वारिस नाबालिग थे इसलिए उस समय राजीव गाँधी और सोनिया गाँधी को उनके बड़े होने तक संपत्ति संभालने की जिम्मेदारी दी गई।

अब ये ध्यान देने वाली बात है कि जिस देश में 20 लाख से अधिक संपत्ति होने पर 85% प्रॉपर्टी सरकार को चली जाती थी, वो नियम राजीव गाँधी की सरकार में ठीक उस समय पलटा गया जब उनके बच्चों को उनकी दादी की विरासत मे मिलनी थी। एक रिपोर्ट में भी कहा गया था, “1 अप्रैल से प्रभावी हुए एक वित्त विधेयक के तहत, भारत में सभी मृत्यु शुल्क समाप्त कर दिए गए हैं और गांधी संपत्ति पर कोई विरासत कर नहीं लगाया जाएगा।”

(डेस्क रिपोर्टिंग, ऑनलाईन रिसर्च इनपुट के साथ)

Narender Dhawan
Author: Narender Dhawan

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