गुरुवार को एनजीटी राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने पर्यावरण नियमों के उल्लंघन करने पर दिल्ली नगर निगम एमसीडी और जल बोर्ड पर 50 करोड़ से अधिक का जुर्माना लगाया है। मामले को लेकर अदालत ने कहा कि दिल्ली जल बोर्ड यमुना नदी में मिलने वाले बरसात के पानी से भरे नालों में सीवेज के बहाव को रोकने में असफल रही है। अदालत ने कहा दिल्ली नगर निगम दक्षिण ने दिल्ली में बरसात के पानी कि स्थितियों और कार्यात्मक प्रभावकारिता को बदलने में लिए अधिकार क्षेत्र के परे काम किया है।
एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ती प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने मामले को लेकर कहा कि यह एक ऐसा मामला नहीं है जहां यमुना नदी में जाने वाले नालों में सीवेज के बहाव के पानी को रोकने में दिल्ली जल बोर्ड को सफलता हासिल नहीं हुई है। अदालत द्वारा बार बार निर्देश जारी किए गए थे और पर्याप्त समय भी दिया गया था। पर फिर भी सभी प्रयास विफल रहें। पीठ में न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति अरूण कुमार त्यागी और न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल व विशेषज्ञ सदस्य अफरोज अहमद भी शामिल थे।
अदालत के इस आदेश में साफ कहा गया है कि आदर्श रूप से तूफानी पानी को डिजाइन किए गए प्राकृतिक जल निकासी प्रणाली के जरिये से और सीवेज को सीवरेज नेटवर्क के माध्यम से प्रवाहित किया जाना चाहिए। नदी में फेंकने से पहले एसटीपी में संचित किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि वर्षा जल नालियों में कच्चे सीवेज के कारण बड़े स्तर पर जल प्रदूषण होता है। दिल्ली जल बोर्ड अपने वैधानिक कार्य के निर्वहन में विफल रहा है।
अधिकरण ने एमसीडी और डीजेबी दोनों को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को दो महीने के अंदर ही लगभग 25.22 करोड़ रुपये का पर्यावरणीय मुआवजा देने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा है कि डीजेबी और एमसीडी से वसूल की गई पर्यावरण क्षति के नुकसान की राशि का उपयोग सीपीसीबी द्वारा दिल्ली में हुई पर्यावरणीय क्षति को ठीक करने और बहाली के लिए किया जाएगा। एनजीटी ने कहा कि इस योजना को एक संयुक्त समिति द्वारा तैयार किया जाना है। इसमें केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के सदस्य सचिव, केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का एक प्रतिनिधि और प्रधान मुख्य वन संरक्षक शामिल होंगे।