दिल्ली सरकार ने लास्ट माइल कनेक्टिविटी को मजबूत करने के उदेश्य से मोहल्ला बसों को सड़क पर उतारने की योजना बनाई थी। लेकिन सरकार की इस महत्वकांक्षी बस योजना को अभी तक अधिकारिक तौर पर लागू नहीं किया गया। जिसकी वजह से लोग इस सुविधा से वंचित है। वर्तमान में इन बसों को छह रुटो पर ट्रायल किया गया है। दो महीने पहले ही लगभग 100 मोहल्ला बसे आ चुकी है। जिनके उपर डिपो में धुल जम रही हैं।
पिछले 4 महीनो से केवल ट्राइल ही चल रहा है। इन बसों को ऐसे क्षेत्रों में चलाने की योजना है जहां बाकी डीटीसी और कलस्टर बसें नहीं पहुंच पाती। यह मोहल्ला बसे लास्ट माइल कललेक्टिविटी के लिए बेहद महत्पूर्ण हैं। बसों के ट्रायल के ल़ॉन्चिंग में हो रही इस देरी से लोग इस सुविधा से पिछले 4 महीनो से वंचित है। यह बसें न केवल प्रमुख मेट्रो स्टेशन को कवर करेगी, बल्कि इन बसों के रुट में स्कूल-कॉलेज आदि को भी जोड़ा जाएगा। इन बसों का अकार समान्य बसों के मुकाबले छोटा होगा। जिसकी वजह से यह बसें असानी से संकरे क्षेत्रों में जा सकती है। यहीं कारण है कि इन्हें मोहल्ला बस कहा गया है। इन बसों को सड़क पर उतारने की वजह लास्ट माइल कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना है।
संभावाना है कि लोग इन बसों की सुविधा अपनाएंगे और निजी वाहनो को छोड़ कर सार्वजनिक परिवहन की ओर बढ़ेंगे। बसों के ट्राइल को शुरुआत में केवल दो ही रुट पर चलाया गया था। जिसके बाद इसकी संख्या बढ़ाकर छ कर दी गई। इन सभी जगहों पर तीन से चार माह से बसों का संचालन जारी है। अधिकारियों के अनुसार बसों का ट्रायल भी सफल रहा है। साथ ही पंजीकरण प्रक्रिया भी पूरी हो गई है। बसों में सुरक्षा और निगरानी के लिए सभी जरूरी उपकरणों की फिटिंग की जा चुकी है। साथ ही बसों का रुट भी तय कर लिया गया है।
शुरूआत में आधिकारिक तौर पर केवल 25 से अधिक रूटों पर इन बसों को चलाया जाएगा। योजना के तहत दिल्ली भर में 2000 से अधिक नौ मीटर से कम लंबाई की मोहल्ला बसें चलाने की योजना है। यह सभी बसें इलेक्ट्रिक होंगी। परिवहन विभाग के अधिकारियों के अनुसार बसों को लांच करने से पहले एक सर्टिफिकेट की जरूरत है। इसे लेकर बस निर्माता एजेंसियों के साथ बैठकों का दौर चल रहा है और यहीं कारण है कि यह बसे लंबे समय से धूल की चादर में खड़ी है।