महिलाओं द्वारा कानून का दुरुपयोग: लड़के कतरा रहे हैं विवाह करने से

written by Narender Dhawan

भारतीय समाज में विवाह एक महत्वपूर्ण संस्थान है, जो जीवन के कई महत्वपूर्ण पहलुओं को प्रभावित करता है। विवाह ना केवल दो व्यक्तियों का मिलन है अपितु दो परिवारों को एकजुट कर नई पीढ़ियों को संस्कारों के मार्ग की ओर अग्रसर कर एक स्थिर और खुशहाल परिवार की नींव रखना है।

लेकिन पुरुषों के अधिकारो व हितो की उपेक्षा करते महिला को एकतरफा प्राथमिकता देने वाले कानूनों के कारण आजकल एक गंभीर समस्या उत्पन्न हो रही है, इए समस्या है लड़कों का विवाह से कतराने का बढ़ता हुआ रुझान।

निःसंदेह हमारे देश मे महिलाएं अपने अधिकारों को लेकर जागरूक हुई हैं,कई ऐसे कानून हैं जो महिलाओं की सुरक्षा व उत्थान के लिए ही बनाए गए हैं, घरेलू हिंसा अधिनियम, दहेज निषेध अधिनियम, और शोषण के खिलाफ इत्यादि ये वो कानून है समाज में महिलाओं को समानता, सुरक्षा और अधिकार दिलाने के लिए बनाए गए हैं । किन्तु कई मामले देखने मे आए है जहा कई महिलाओ ने इन कानूनों का दुरुपयोग कर पुरुषों को प्रताड़ित किया हैं, जिसके कारण कई निर्दोष पुरुषों को समाज मे ना केवल अपमानित होना पड़ा है अपितु सामाजिक -आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है। जिसका दुषप्रभाव ये हुआ है कि आज के अधिकांश युवको को विवाह के नाम पर डर लगने लगा है। ये डर भी काफी हद जायज है क्योंकि ऐसे कई मामले देखने मे आए है जिनमे महिलाओं द्वारा पति पर शारीरिक या मानसिक उत्पीड़न के झूठे आरोप लगाए गए हैं। चुकि भारतीय कानून इस प्रकार के मामलों में बहुत सख्त है, जिसके कारण ही इन कानूनों का दुरुपयोग किये जाने के कारण लड़कों को जेल, समाज में बदनामी, और वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा है। इसी के कारण कई लड़के विवाह से दूर रहने लगे हैं, क्योंकि वे नहीं चाहते कि उनके जीवन को इस प्रकार की अव्यावसायिक और झूठी समस्याओं से जूझना पड़े।

लड़कों का मानसिक तनाव और चिंता

इस प्रकार के दुरुपयोग से लड़कों में मानसिक तनाव और चिंता का स्तर बहुत बढ़ जाता है। वे यह सोचने पर मजबूर होते हैं कि अगर विवाह के बाद उन्हें इस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा, तो उनके लिए जीवन का क्या अर्थ रहेगा। इसलिए, वे विवाह से बचने की कोशिश करते हैं, ताकि वे मानसिक शांति और सुरक्षा में रह सकें।

इस प्रकार के कानूनों का दुरुपयोग समाज में असमानताएँ पैदा कर रहा है। जहां एक ओर लड़कियों को एक पक्षीय अधिकार मिल रहे हैं, वहीं दूसरी ओर लड़कों को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। अगर यह स्थिति यूं ही जारी रहती है, तो समाज में और अधिक असमानताएँ पैदा हो सकती हैं, जिससे पारिवारिक संरचना पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

महिला सशक्तिकरण व सुरक्षा के नाम पर मिले कानूनों का महिलाओं द्वारा दुरुपयोग: एक गंभीर चिंता

महिला सशक्तिकरण के लिए विभिन्न कानून जैसे की दहेज उत्पीड़न कानून, घरेलू हिंसा कानून, भरण-पोषण का अधिकार आदि। इन कानूनों का उद्देश्य महिलाओं को संरक्षण और यह सुनिश्चित करना था कि महिलाओं को उनके घरों में उत्पीड़न और शारीरिक/मानसिक शोषण से बचाया जा सके।

लेकिन कुछ महिलाओं ने इन  कानूनों का अपने निजी फायदे के लिए दुरुपयोग करना शुरू कर दिया है। इन  धाराओ में दर्ज अधिकांश मामले झूठे और मनगढ़ंत होते हैं जिसके कारण निर्दोष पुरुषों और उनके परिवारों को बिना किसी अपराध के कानूनी और सामाजिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

धारा 498A के तहत तो किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस को कोई विशेष जांच प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं होती। यह कानून इतना  सख्त है कि आरोपी व्यक्ति को अक्सर बिना किसी सबूत के भी गिरफ्तार कर लिया जाता है, जिसके बाद उसे कई महीने या सालों तक कानूनी उलझनों में फंसना पड़ता है। इससे न केवल आरोपी बल्कि उनके परिवार के सदस्य भी मानसिक, भावनात्मक और वित्तीय रूप से प्रभावित होते हैं। ऐसे मामलों में जहां आरोप झूठे होते हैं, वहां निर्दोष व्यक्ति की स्थिति काफी कठिन हो जाती है, हालांकि अब अदालतों में इस प्रकार के मामलों की सुनवाई और न्यायिक प्रक्रिया के दौरान ये स्पष्ट हो चुका है इस धारा में दर्ज अधिकांश मुकदमे झूठे है ।

न्यायिक सुधार की आवश्यकता

विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के दुरुपयोग को रोकने के लिए न्यायिक प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता है। न्यायपालिका को इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए त्वरित और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करनी चाहिए, ताकि उन महिलाओं को मदद मिल सके जो वास्तव में उत्पीड़न का शिकार हो रही हैं और झूठे मामलों से पुरुषों का बचाव किया जा सके। इसके अलावा, पुलिस और न्यायिक अधिकारियों को भी ऐसे मामलों में अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है, ताकि केवल वास्तविक मामलों की जांच हो और झूठे आरोपों के कारण निर्दोष लोगों को परेशान न किया जाए।

समाधान और सुझाव

इस समस्या का समाधान केवल कानूनी बदलावों के माध्यम से ही नहीं, बल्कि समाज में जागरूकता लाने के द्वारा भी हो सकता है। हमें यह समझना होगा कि कानून का उद्देश्य सभी को समान अधिकार और सुरक्षा देना है, न कि किसी को दूसरे पर हावी होने का अवसर प्रदान करना। इसके लिए जरूरी है कि कानूनी प्रावधानों का सही तरीके से उपयोग किया जाए और किसी भी स्थिति में इनका दुरुपयोग न हो।

साथ ही, लड़कों को मानसिक रूप से तैयार किया जाना चाहिए कि विवाह से जुड़े अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति उन्हें जिम्मेदारियों का पालन करना चाहिए। परिवार और समाज को इस मुद्दे पर जागरूक करने की आवश्यकता है, ताकि समाज में समानता और न्याय का वातावरण बने।

लड़को का विवाह से कतराने के कारणों में महिलाओं द्वारा कानून का दुरुपयोग एक महत्वपूर्ण कारण बनता जा रहा है। इसके लिए जरूरी है कि हम कानूनों का सही तरीके से उपयोग करें, ताकि न तो महिलाओं का शोषण हो और न ही पुरुषों को अनावश्यक परेशानियों का सामना करना पड़े। इस तरह हम एक ऐसे समाज का निर्माण कर सकते हैं, जहां हर किसी को न्याय मिले और पारिवारिक संबंध मजबूत हों।

महिला सशक्तिकरण के लिए बनाए गए कानूनों का उद्देश्य कभी भी पुरुषों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं होना चाहिए।

कानूनों का दुरुपयोग रोकने के लिए आरोपों की जांच सख्ती से की जानी चाहिए। यदि आरोप झूठे पाए जाते हैं, तो आरोपी महिला के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए।

  • समाज को यह समझाना होगा कि कानूनों का उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा है, न कि किसी के अधिकारों का हनन। इसके लिए जागरूकता अभियानों की आवश्यकता है।
  • कानूनी प्रक्रिया के पहले, परिवारों के बीच मध्यस्थता और काउंसलिंग को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ताकि छोटी-छोटी समस्याओं को कानूनी मुकदमों में न बदला जाए।
  • महिला सशक्तिकरण कानूनों का उद्देश्य महिलाओं को सुरक्षा, सम्मान और समानता प्रदान करना है, लेकिन इनका दुरुपयोग समाज में अविश्वास और असंतुलन पैदा कर सकता है। समाज को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इन कानूनों का सही तरीके से उपयोग हो, ताकि न तो महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन हो, और न ही पुरुषों के खिलाफ झूठे आरोपों का सहारा लिया जाए। न्याय प्रणाली को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए, ताकि सभी को समान न्याय मिल सके।
Narender Dhawan
Author: Narender Dhawan

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