इस्लामाबाद। पाकिस्तान को चारों तरफ से मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। सामाजिक, आर्थिक से लेकर अंतरराष्ट्रीय संबंधों तक देश के लिए कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। अमेरिका में लीक हुई खुफिया जानकारी से पाकिस्तान सरकार के लिए मुश्किल खड़ी हो गई। यहां पर्यवेक्षकों को अंदेशा है कि इस लीक से पाकिस्तान अमेरिका की सहानुभूति खो सकता है। लीक हुई जानकारी का सार यह है कि पाकिस्तान सरकार के अंदर इस बात को लेकर गहरे मतभेद हैं कि वह अपने को अमेरिका के पाले में रखे या चीन के।
आम तौर पर धारणा रही है कि शहबाज शरीफ सरकार बनने के बाद पाकिस्तान अमेरिका के करीब गया है और दोनों देशों के रिश्ते पिछले एक साल में बेहतर हुए हैं। अमेरिका में बड़ी संख्या में खुफिया दस्तावेज डिस्कॉर्ड मेसेजिंग प्लैटफॉर्म पर लीक हुए हैं। इन दस्तावेजों से यह पता चलता है कि विभिन्न देश अपने अंदरूनी आकलन में इस समय अमेरिका से अपने संबंधों के बारे में क्या समझ रख रहे हैं।
लीक हुए दस्तावेजों का संबंध पाकिस्तान के अलावा भारत, ब्राजील और मिस्र से भी है। इन दस्तावेजों के बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने रविवार को प्रकाशित की। पाकिस्तान में हलचल इस बात को लेकर भी मची है कि जो अति गोपनीय टिप्पणी विदेश राज्यमंत्री हिना रब्बानी खार ने विचार-विमर्श के लिए पाकिस्तान सरकार को भेजी, वह अमेरिका पहुंच गई।
वॉशिंगटन पोस्ट के मुताबिक खार ने यह टिप्पणी बीते मार्च में भेजी थी। इसमें उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान के लिए चीन और अमेरिका के बीच तटस्थ रहना संभव नहीं रह गया है। खार ने यह टिप्पणी पाकिस्तान के सामने कठिन विकल्प शीर्षक से तैयार की थी। खार पहले पाकिस्तान की विदेश मंत्री भी रह चुकी हैं।
खार ने यह दस्तावेज पाकिस्तान सरकार के अंदर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की तरफ से आयोजित डेमोक्रेसी समिट में शामिल होने या ना होने को लेकर चल रही बहस के सिलसिले में तैयार किया था। पाकिस्तान ने इस शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लिया। यह इस बात का संकेत है कि खार की दलीलों को शरीफ सरकार ने स्वीकार कर लिया। चूंकि यह दस्तावेज अमेरिका के हाथ लग गया, इसलिए उसे यह मालूम हो गया है कि पाकिस्तान ने उससे बनते रिश्तों पर चीन को तरजीह दी है।