क्या दिल्ली के स्कूलों को मनमानी फीस बढ़ाने की इजाजत है? जानिये कानून क्या कहता है

 

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में किसी भी स्कूल को फीस बढ़ाने में मनमानी की इजाजत कानून में नहीं दी गई है। फिर चाहे स्कूल सरकारी जमीन पर बना हो या निजी जमीन पर। ऐसा कहना है एडवोकेट संतोष कुमार त्रिपाठी का जो दिल्ली शिक्षा निदेशालय(DoE) के स्थायी वकील हैं। हालांकि, प्राइवेट स्कूलों की एक्शन कमिटी इससे इत्तेफाक नहीं रखती। उनके मुताबिक, वह उक्त कानून से बंधे स्कूलों के दायरे में नहीं आते। कमिटी ने दावा किया कि प्राइवेट लैंड पर बने स्कूलों को अपने खर्चों को खुद ही पूरा करना होता है, जिसके लिए फीस बढ़ोतरी ही एकमात्र जरिया है। ये दोनों ऐसे वकील हैं, फीस बढ़ोतरी से जुड़े हर कानूनी विवाद में सम्बद्ध विभागों और संगठनों का प्रतिनिधित्व करते आए हैं।

राजधानी में नर्सरी, केजी और पहली में दाखिले के लिए हर स्कूल अंक प्रणाली को दाखिले का आधार बनाता है। जिसमें मुख्यता घर से दूरी, भाई-बहन, पूर्व छात्र जैसे अलग-अलग मानदंड होते हैं।

कई विद्यार्थियों के तय मानदंडों के अनुरूप अंक नहीं आ पाते हैं। ऐसे में स्कूल में बार-बार चक्कर लगाकर दाखिले के लिए परेशान हो चुके अभिभावकों को अंत में मैनेजमेंट कोटा की सीटें ही अंतिम उम्मीद दिखती हैं। इसके लिए अभिभावक मोटी रकम तक देने के लिए तैयार रहते हैं। इन्हीं अभिभावकों की परेशानी का स्कूल या एजेंट फायदा उठाते हैं। कई बार तो स्कूल सीधा इन अभिभावकों से रुपयों की मांग करते हैं। वहीं, निजी एजेंसियां या एजेंट भी आनलाइन व आफलाइन माध्यम से ऐसे सभी अभिभावकों का डाटा एकत्रित कर मोटी रकम लेकर दाखिला दिलाने की गारंटी देते हैं।

एक्शन कमेटी ऑफ अनएडेड रिकाग्नाइज्ड प्राइवेट स्कूल के अध्यक्ष भरत अरोड़ा ने कहा कि अभिभावक संघअभिभावकों को ऐसे लालच से बचना चाहिए और एजेंटों के चक्कर में नहीं फंसना चाहिए। हमारे संज्ञान में किसी भी निजी स्कूल में सीट बेचने की शिकायत नहीं आई है। अगर कोई स्कूल ऐसा करता पाया जाता है तो हम उसे तुरंत एसोसिएशन से बाहर कर देंगे।

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Author: Staff Reporter

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