क्या अब अपने देश को इंडिया के नाम की बजाय भारत के नाम से ही प्रचलित किया जाएगा। राजनीतिक गलियारों में कहा यही जा रहा है कि आने वाले संसद के विशेष सत्र में देश को आधिकारिक तौर पर ‘रिपब्लिक ऑफ भारत’ कहे जाने वाले प्रस्ताव को पास कराया जा सकता है। लेकिन संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि देश के संविधान में ‘इंडिया, दैट इज भारत’ का पहले से ही जिक्र है। इसलिए इंडिया और भारत यह दोनों नाम संविधान में दर्ज हैं और एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। संविधान विशेषज्ञों के मुताबिक फिलहाल संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर में बदलाव तकरीबन नामुमकिन जैसा ही है। वहीं देश के सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा जोर पकड़ने लगी है कि इंडिया को आधिकारिक तौर पर भारत पुकारे जाने से क्या भारतीय जनता पार्टी को कोई बड़ा सियासी लाभ मिल सकता है या नहीं।
दरअसल राष्ट्रपति की ओर से 9 सितंबर को जी-20 कार्यक्रम के दौरान भारत मंडपम में आयोजित होने वाले डिनर के निमंत्रण पत्र में ‘द प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ की ओर से न्योता भेजा गया है। इसी निमंत्रण पत्र पर छपे ‘भारत’ शब्द को लेकर अब सियासत होने लगी है। राजनीतिक पार्टियों का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार देश के नाम पर भी हमला कर रही है। कांग्रेस के नेता जयराम रमेश ने कहा कि जब संविधान के अनुच्छेद एक में कहा गया है भारत जो की इंडिया था वह राज्यों का संघ है, तो उसमें इंडिया शब्द को क्यों हटाया जा रहा है। हालांकि कांग्रेस के नेता शशि थरूर कहते हैं कि जब संविधान में इंडिया और भारत दोनों का जिक्र है, तो इसमें संवैधानिक तौर पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। लेकिन इस नाम को लेकर सिर्फ कांग्रेस ही नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की ओर से भी बाकायदा भारत के समर्थन में ट्वीट और बयान दिए जा रहे हैं।
हालांकि संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि इंडिया और भारत के नाम को लेकर किसी तरीके का कोई संवैधानिक विवाद नहीं है। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आरएन बनर्जी कहते हैं कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 1 कहता है, इंडिया जो कि भारत है, राज्यों का एक संघ होगा। ऐसे में इंडिया और भारत के नाम के इस्तेमाल को लेकर संवैधानिक रूप से कोई संकट नहीं है। वह कहते हैं कि अगर इसके सियासी मायने तलाशे जाएंगे तो निश्चित तौर पर राजनीतिक टकराहट बढ़ेगी। वह कहते हैं कि यह पहला मौका नहीं है जब भारत का नाम इस तरह से इस्तेमाल किया गया। ऐसे पहले भी कई मौके आए जब इंडिया की जगह पर भारत के नाम का जिक्र हुआ। प्रोफेसर बनर्जी कहते हैं कि जब संविधान में इसका जिक्र है कि फिर इस तरीके के निमंत्रण पर होने वाले विवाद का मतलब महज सियासी ही माना जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता सुमित वर्मा कहते हैं कि भारत और इंडिया एक दूसरे के पर्यायवाची ही हैं। इसलिए यह कहना कि इंडिया की जगह पर भारत का नाम इस्तेमाल किया गया, वह किसी बहुत बड़े फेरबदल के संकेत हैं, ऐसा कानूनी रूप से संभव नहीं नजर आ रहा है और सियासी रूप से भी इसकी संभावना न के तौर पर दिख रही है। सुमित वर्मा कहते हैं कि भारत के संविधान को देखेंगे तो उसमें कॉन्स्टीट्यूशनल ऑफ इंडिया और भारत का संविधान दोनों लिखे हुए नजर आते हैं। इसके अलावा वह कहते हैं कि पासपोर्ट पर भी रिपब्लिक ऑफ इंडिया अंग्रेजी में दर्ज होता है, जबकि हिंदी में भारत का गणराज्य लिखा होता है। यह कहना कि इंडिया की जगह पर भारत नाम लिख देना कॉन्स्टीट्यूशनल अमेंडमेंट की राह पर बढ़ाने जैसा है, यह संभव नहीं दिखता। वह कहते हैं कि कॉन्स्टीट्यूशनल अमेंडमेंट हो सकते हैं, लेकिन उसके लिए संसद में दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन जब संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर में बदलाव की जरूरत होती है, तो इस संविधान में इस बात का जिक्र है कि उसे बदलने के लिए बनाने वाली कमेटी का बैठना जरूरी है। संविधान बनाने वाली कमेटी में तो बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जैसे तमाम लोग शामिल थे। तो ऐसे में संभावना भी तकरीबन खारिज हो जाती है कि बेसिक स्ट्रक्चर में बदलाव हो पाएगा। वरिष्ठ अधिवक्ता सुमित वर्मा कहते हैं कि संविधान बनाने वाली कमेटी का कोई भी सदस्य इस वक्त मौजूद नहीं है, इसलिए यह प्रक्रिया अब बहुत कठिन मानी जा सकती है।
पूरे मामले को समझते हुए राजनीतिक जानकारों का कहना है कि 2024 के लोकसभा चुनाव के लिहाज से यह मुद्दा सियासी हो गया है। राजनीति विश्लेषक सदानंद पाठक कहते हैं कि विपक्षी दल इसको अपने गठबंधन के रखे गए नए नाम I.N.D.I.A के साथ जोड़कर देख रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को भी भारत नाम के साथ सियासत को आगे बढ़ने का एक मौका मिलता हुआ दिख रहा है। पाठक कहते हैं कि संवैधानिक रूप से इंडिया और भारत के नाम पर बदलाव की प्रक्रिया पर कानूनी दांव पेंच फंस सकते हैं। लेकिन सियासत के लिहाज से इंडिया और भारत के नाम में दोनों दलों को राजनीति करने का भरपूर मौका मिल रहा है। इस मुद्दे पर कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी कहते हैं कि भाजपा के नेता इंडिया शब्द से सहम गए हैं। क्या वे इस हद तक चले जाएंगे कि वे संविधान बदल देंगे। वह कहते हैं कि संविधान में लिखा है, ‘इंडिया दैट इज़ भारत’। इसलिए उसको बदलना भारतीय जनता पार्टी का सीधे तौर पर गठबंधन से डरने जैसा ही है।