प्रकृति और संस्कृति का मिश्रण : कौन कहता है कि धरती पर खोजने के लिए और कुछ नहीं है? 1 अप्रैल 1973 को जब प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत हुई, तो कॉर्बेट सिर्फ़ प्रकृति के बारे में नहीं था, जो उस समय की सबसे बड़ी रूढ़िवादी पहल थी। इस क्षेत्र को इतिहास और सांस्कृतिक विरासत के सबसे समृद्ध खजाने के रूप में भी चिह्नित किया गया।
आज हम जिम कॉर्बेट के बारे में जानेंगे की जिम कॉर्बेट का नाम जिम कॉर्बेट कैसे रखा गया? उत्तराखंड के नैनीताल में स्थित जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क देश के मशहूर पर्यटन स्थलों में से एक है! यह लगभग 520 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है इस नेशनल पार्क में सैकड़ों तरह के पक्षी और जानवर मौजूद है 1936 में बने इस नेशनल पार्क का नाम हेली नेशनल पार्क था जिसका नाम 1952 में बदलकर एक मशहूर शिकारी के नाम पर रख दिया गयाl
जिम कॉर्बेट का नाम मशहूर शिकारी से संरक्षक बने जिम कॉर्बेट के नाम पर रखा गया जिम कॉर्बेट शिकारी होने के साथ ही एक बेहतरीन लेखक भी थे उन्होंने अपनी शिकारी कथाओं में बताया कि वह शिकार के दौरान पेड़ के नीचे सोते थे क्योंकि वह जानते थे कि अगर आदमखोर बाघ आया तो उसे पेड़ के ऊपर रहने वाले लंगूर शोर मचाकर उन्हें सूचित कर देंगेl जिम कॉर्बेट शिकारी को कई टाइगर, शेरनी और बाघ बाघिनो के शिकार का श्रेय जाता हैl
कॉर्बेट ने शिकार के साथ-साथ प्रकृति के संरक्षण के लिए भी काम किया उसे दौरान उन्होंने बहुत सी किताबें लिखी और किताब लिखकर उन्होंने भारतीय जंगलों को दुनिया से रूबरू करवाया और उनको प्रसिद्धि दिलाई उन्होंने बताया कि दूसरे शिकारियों की तरह उन्हें शिकार का शौक नहीं वह यह सुरक्षा एवं शांति के लिए किया करते हैं उन्होंने शिकार के प्रति दुनिया का नजरिया बदला।
बताया जाता है कि नैनीताल के छोटी हल्द्वानी गांव की जिम्मेदारी लेकर उन्होंने उस गांव की रक्षा की थी l उनकी याद में इस गांव में एक स्मारक (जिम कॉर्बेट म्यूजियम)भी है ।आदमखोर जीव के आतंक से परेशान कई राज्य इन जीवों से सुरक्षा पाने के लिए लोग कॉर्बेट को शिकार के लिए बुलाया करते थे ।छोटी हल्द्वानी को अब कॉर्बेट विलेज के नाम से भी जाना जाता है ।तो इस तरह से पड़ा जिम कॉर्बेट का नाम जिम कॉर्बेटll