ब्लड कैंसर के मरीजों को मिलेगा अत्याधुनिक उपचार, भारत की पहली सीएआर-टी थेरेपी को मिली मंजूरी

ब्लड कैंसर के मरीजों के इलाज के लिए भारत के एक अत्याधुनिक उपचार को अनुमति मिल गई है। केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने विशेषज्ञ कार्य समिति की सिफारिश पर भारत की पहली स्वदेशी काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर (सीएआर)-टी सेल थेरेपी को बाजार में लाने की मंजूरी दी है। इस थेरेपी का इस्तेमाल गंभीर लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया और बी-सेल लिंफोमा जैसे कैंसर के इलाज में किया जाएगा।

यह एक ऐसी तकनीक है, जिसमें कैंसर मरीज से सफेद रक्त कोशिकाओं के साथ टी सेल्स निकाले जाते हैं। इसके बाद इन्हें एक प्रयोगशाला में लाकर टी सेल्स और सफेद रक्त कोशिकाओं को अलग अलग किया जाता है। इसके बाद ट्यूमर कोशिकाओं को लक्षित करने के लिए टी सेल्स को प्रयोगशाला में संशोधित किया जाता है।

इसके बाद वापस से इन्हें मरीज में डाला जाता है। यह प्रक्रिया सिर्फ एक बार की जाती है। मरीज के शरीर में जाने के बाद कैंसर के साथ टी सेल्स लड़ते हैं और उन्हें अंदर ही अंदर खत्म करने लगते हैं।

ल्यूकेमिया (श्वेत रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करने वाली कोशिकाओं से उत्पन्न होने वाले कैंसर) और लिम्फोमा (लसीका प्रणाली से उत्पन्न होने वाले) के लिए इस थेरेपी को मंजूरी दी गई है।

2017 में अमेरिका में इस थेरेपी को अनुमति मिली थी, जहां एक मरीज को करीब तीन से चार करोड़ रुपये खर्च करने पड़ते हैं, लेकिन भारत के वैज्ञानिकों ने 2018 में इस पर काम शुरू किया। फिलहाल, आगामी दिनों में यह करीब 30 से 40 लाख रुपये में उपलब्ध हो सकती है।

हालांकि, यह कीमत भी सभी कैंसर मरीजों के लिए सरल नहीं है लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि आगामी समय में यह थैरेपी न सिर्फ काफी सस्ती होगी बल्कि देश के अस्पतालों में उपलब्ध भी होगी।

80% तक असरदार कैंसर मरीजों पर
आईआईटी बॉम्बे और टाटा मेमोरियल सेंटर (टीएमसी) ने संयुक्त रूप से इस स्वदेशी तकनीक को विकसित किया है जिसका परीक्षण देश के कई बड़े अस्पतालों में दो अलग अलग चरणों में हुआ है।

एक चरण चंडीगढ़ पीजीआई और एक टाटा अस्पताल की निगरानी में हुआ। चंडीगढ़ पीजीआई के डॉक्टरों ने अपने परीक्षण में इस थैरेपी को कैंसर मरीजों पर 88 फीसदी तक असरदार पाया है। जल्द ही मल्टीपल मायलोमा कैंसर को लेकर भी इसका परीक्षण होगा।

दुनिया में भारत की पहचान और मजबूत
सीडीएससीओ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मुंबई स्थित इम्यूनोएडॉप्टिव सेल थेरेपी प्राइवेट लिमिटेड (इम्यूनोएसीटी) की ओर से स्वदेशी कार टी सेल थेरेपी को बाजार में लाने के लिए कुछ माह पहले आवेदन दिया गया जिस पर विशेषज्ञ कार्य समिति ने चर्चा के बाद अनुमति देने की सिफारिश की है।

इसके आधार पर इम्यूनोएसीटी कंपनी को मंजूरी दी गई है। वहीं कंपनी ने कहा है कि उसे पहले मानवकृत `मेड इन इंडिया’ सीडी 19-लक्षित सीएआर-टी सेल थेरेपी उत्पाद के लिए विपणन प्राधिकरण की अनुमति मिल गई है, जो भारत को वैश्विक उन्नत सेल और जीन थेरेपी मानचित्र पर लेकर आएगा। कंपनी के अनुसार, जल्द ही इस थेरेपी को देश के अस्पतालों में उपलब्ध कराया जाएगा।

इम्यूनोथेरेपी का एक स्वरूप
देश में हर साल 14 लाख से ज्यादा कैंसर मरीज सामने आ रहे हैं। इनकी संख्या हर साल लगातार बढ़ रही है। अभी तक कैंसर के मामले में रेडियोथेरेपी, कीमोथेरेपी और सर्जरी के विकल्प हैं, लेकिन दुनिया के कई देशों में कार टी सेल थेरेपी को लेकर भी काम किया जा रहा है, जिसे इम्यूनोथेरेपी भी कहा जाता है। इसका उद्देश्य मरीज के शरीर में ऐसे एजेंट विकसित करना है जो कैंसर के खिलाफ लड़ते हुए मरीज की जान बचा सकें।

Shanu Jha
Author: Shanu Jha

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